दक्षिण चीन सागर (एससीएस) पर अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले के बाद चीन की जैसी प्रतिक्रिया सामने आई है, उससे ऐसा लगता है कि आने वाले वक्त में इस क्षेत्र में तनाव कम होने के बजाय और बढ़ सकता है। दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन और फिलीपींस के बीच लंबे समय से झगड़ा चल रहा था। न्यायाधिकरण ने दक्षिण चीन सागर के नब्बे फीसद हिस्से पर चीन के दावों को खारिज कर दिया है और ‘नाइन-डैश लाइन’ में पड़ने वाले समुद्री क्षेत्र पर ऐतिहासिक अधिकारों के लिए चीन के पास कोई कानूनी आधार न होने की बात कही है।
न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में साफ कहा है कि अतीत में दूसरे देशों के मछुआरों के साथ-साथ चीनी नाविक और मछुआरे भी एससीएस में द्वीपों का इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि एससीएस के जलक्षेत्र या उसके संसाधनों पर ऐतिहासिक रूप से चीन का नियंत्रण था। फैसले को स्वीकार करने के बजाय चीन ने न्यायाधिकरण को फिलीपींस के अनुरोध पर गठित बता कर उसकी वैधता पर ही सवाल उठा दिए हैं। लेकिन सच यह है कि यह फैसला समुद्री नियमों पर एक संयुक्त राष्ट्र संधि के तहत सामने आया है, जिस पर चीन और फिलीपींस, दोनों ने हस्ताक्षर कर रखे हैं। ‘लॉ आॅफ द सी’ नामक अंतरराष्ट्रीय संधि के मुताबिक समुद्र में डूबे किसी ढांचे या चट्टानों पर स्वतंत्र तट के रूप में दावा नहीं किया जा सकता और न इन पर बने किसी ढांचे के जरिए इसे कब्जा कहा जा सकता है।
दरअसल, एससीएस को दुनिया भर में एक अहम समुद्री व्यापार के मार्ग के तौर पर देखा जाता है। इस इलाके से सालाना लगभग पांच खरब डॉलर के व्यावसायिक सामानों की आवाजाही होती है। माना जाता है कि मूंगे की चट्टानों के द्वीपों से समृद्ध इस क्षेत्र में तेल और गैस का भी विशाल भंडार है। यही वजह है कि एससीएस पर चीन और फिलीपींस के अलावा विएतनाम, मलेशिया, ब्रूनेई और ताइवान भी दावा करते रहे हैं। लेकिन इन देशों में हर लिहाज से ज्यादा ताकतवर होने के नाते चीन का प्रभाव ज्यादा रहा है। 1940 के दशक के एक चीनी नक्शे के आधार पर वह ‘नाइन-डैश लाइन’ में पड़ने वाले समुद्री इलाके पर अपना अधिकार भी मानता है। यों चीन का यह दावा भी है कि उसके शासकों ने करीब दो हजार साल पहले इन द्वीपों की खोज की थी और पूरे इतिहास में इस इलाके में उनके नियंत्रण का हवाला मिलता है।
जबकि फिलीपींस, विएतनाम, मलेशिया, ब्रूनेई और ताइवान चीन के इस दावे को सही नहीं मानते हैं। अमेरिका का इस क्षेत्र में सीधा दखल नहीं है, पर इससे उसके भी आर्थिक और राजनीतिक हित जुड़े हुए हैं। इसीलिए दबाव बनाने के मकसद से उसने फैसले को चीन के लिए बाध्यकारी बताया है। अमेरिका ने इस इलाके में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने का इरादा भी जताया है। दूसरी ओर, हाल में इस क्षेत्र के आसपास अमेरिकी गश्त से नाराज चीन ने कहा कि उसकी सेनाएं धमकियों और खतरों से निपटने के लिए तैयार हैं। जाहिर है, अगर संबंधित पक्ष किसी सहमति के बिंदु तक नहीं पहुंचे तो एससीएस संबंधी विवाद और भी गंभीर रूप ले सकता है।