हमारे देश में विकास के लिए आधारभूत ढांचा मजबूत करने के नाम पर सबसे अधिक जोर सड़कों के विकास पर दिया जाता है। सरकारें अधिक वजन सहन करने और फर्राटा गाड़ियों के दौड़ सकने लायक सड़कें बनाने की उपलब्धियां गिनाते नहीं थकतीं। यह सही है कि आर्थिक विकास के लिए सड़कों का विस्तार और अच्छी सड़कों का निर्माण जरूरी है। मगर इन सड़कों पर सुरक्षा उपायों को लेकर वैसी गंभीरता नहीं दिखाई जाती, जैसी दिखाई जानी चाहिए। यही वजह है कि राजमार्गों पर सबसे अधिक जानलेवा दुर्घटनाएं होती देखी जाती हैं।
पिछले तीन दिनों में उत्तराखंड और राजस्थान में हुए पांच बड़े हादसे इसका प्रमाण हैं। पहाड़ों की सड़कें वैसे भी मैदानी इलाकों की अपेक्षा ज्यादा खतरनाक और दुर्घटना संभावित मानी जाती हैं। मगर प्राय: देखा जाता है कि उन पर किनारों की तरफ दुर्घटना के वक्त सुरक्षा के लिए लोहे की बाड़ वगैरह लगाने की जरूरत नहीं समझी जाती, जिसकी वजह से जरा संतुलन खोते ही गाड़ियां गहरी खाई में रपट जाती हैं। उत्तराखंड में हुए तीन बड़े हादसों में यही हुआ, जिसके चलते उन्नीस लोगों की जान चली गई। मैदानी भागों में भी सड़कों का आलम यही है।
कहने को राजमार्गों का निर्माण किया गया है, उन पर गति सीमा अबाध रखी गई है, मगर सड़कों के किनारे अक्सर खुले छोड़ दिए गए हैं, जिसके चलते न सिर्फ उन पर आवारा पशु अचानक आ पहुंचते हैं, जिनकी वजह से तेज रफ्तार गाड़ियां संतुलन खोकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं, बल्कि बरसात वगैरह की वजह से अगर किसी गाड़ी का पहिया चूक से भी मिट्टी पर पहुंच जाए तो वह फिसल कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है।
फिर कई राजमार्गों का विकास कुछ इस तरह हुआ है कि कहीं-कहीं कस्बे, गांव वगैरह के बीच से होकर जब वे गुजरते हैं, तो वे सामान्य सड़कों की तरह ही हो जाते हैं। उन पर से गुजरना अक्सर जोखिम भरा काम हो जाता है। इसलिए लंबे समय से मांग की जाती रही है कि राजमार्गों का विकास करते समय उन पर सुरक्षा व्यवस्था भी पुख्ता होनी चाहिए, ताकि उन पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सके। मगर अफसोस कि अभी तक इस दिशा में गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया है।
सड़कों का निर्माण करते समय हमेशा संबंधित देशों की भौगोलिक स्थितियों और उन पर चलने वाले वाहनों की बनावट, चालकों की प्रवृत्ति आदि का भी अध्ययन किया जाता है। हमारे यहां अभी ज्यादातर जगहों पर विभिन्न प्रकार के वाहन इस्तेमाल होते हैं। छोटे से लेकर भारी वाहनों तक। उनमें सभी को राजमार्गों पर चलने लायक नहीं माना जा सकता। मगर छोटी गाड़ियां लेकर भी लोग राजमार्गों पर उसी रफ्तार से चलने का प्रयास करते देखे जाते हैं, जिस रफ्तार से ताकतवर इंजन और बेहतर सुरक्षा इंतजाम वाले वाहन चलते हैं।
ऐसी स्थिति में अक्सर छोटे वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। फिर तमाम कड़ाई के बाद भी बहुत सारे लोग शराब पीकर गाड़ी चलाने से बाज नहीं आते। ट्रकों, बसों तक के चालक नशे में चलते पाए जाते हैं, जिन पर अधिक जिम्मेदारी होती है। इसीलिए दूसरे देशों में भारी वाहन चलाने वालों को लाइसेंस देते समय ज्यादा सावधानी बरती जाती है। मगर हमारे यहां वाहन चलाने का लाइसेंस उसे भी मिल जाता है, जिसने कभी वाहन चलाया ही नहीं। जब तक इन तमाम पहलुओं पर व्यावहारिक ढंग से विचार नहीं किया जाएगा, सड़क दुर्घटनाओं पर रोक लगाना मुश्किल बना रहेगा।