जब टीवी, फ्रिज जैसी उपभोक्ता वस्तुएं और घरेलू जरूरतों का सामान सस्ता हो जाए तो और क्या चाहिए! यही जीएसटी परिषद ने किया है करों की दर की श्रेणियां बदल कर। इसलिए सरकार का यह एक बड़ा और महत्त्वपूर्ण फैसला है। देश में समान कर-व्यवस्था लागू करने के मकसद से पिछले साल एक जुलाई से वस्तु एवं सेवाकर यानी जीएसटी की नई व्यवस्था अमल में है। तभी से इसमें करों को तर्क संगत बनाने की मांग हो रही है। जीएसटी को काफी उत्साह के साथ लागू किया गया था। लेकिन उद्योग जगत के विभिन्न हिस्सों से अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिलने और जनता पर पड़ते बोझ को देखते हुए अब इसमें सुधार के कदम उठाए जा रहे हैं। कुछ वस्तुएं ऐसी थीं जो ज्यादा कर वाली श्रेणियों में आने से काफी महंगी हो गई थीं। जीएसटी में सबसे ऊंची कर दर वाली श्रेणी अट्ठाईस फीसद की है। इसे लागू करते वक्त इस श्रेणी में दो सौ छब्बीस वस्तुएं और उत्पाद थे। लेकिन अब इस वर्ग में सिर्फ पैंतीस उत्पाद रह गए हैं।

जीएसटी को लेकर सबसे ज्यादा आवाज इसके पेचीदा स्वरूप और इसके अमल के तरीकों के बाबत उठी। अभी इसमें शून्य, पांच, बारह, अठारह और अट्ठाईस फीसद वाली पांच कर श्रेणियां हैं। कर श्रेणियों की इस विसंगति के चलते ही यह व्यवस्था आलोचनाओं का शिकार हुई। शुरू में इसे लागू करने की हड़बड़ी में इस हकीकत को नजरअंदाज कर दिया गया कि रोजमर्रा की जरूरतों वाला जो सामान लोगों को सस्ता मिलना चाहिए, वह लोगों की जेब पर भारी पड़ने लगेगा। हालांकि इसके पीछे बड़ा मकसद भारी मात्रा में राजस्व संग्रह था। लेकिन अब अगर सरकार जागी है और समझ में आने लगा है कि जीएसटी की मार से त्रस्त जनता और उद्योग को राहत दी जानी चाहिए तो यह स्वागतयोग्य है। जीएसटी परिषद अब पांच में से दो श्रेणियों को खत्म करके तीन श्रेणियां ही बनाए रखने जैसे कदम पर भी विचार कर रही है। माना जा रहा है कि अट्ठाईस फीसद वाली श्रेणी खत्म होनी चाहिए। यह उद्योगों, खासतौर से उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों को भी रास नहीं आ रहा। परिषद ने इस सबसे ऊंची श्रेणी में अब एक सौ इक्यानवे वस्तुओं पर से कर दरें कम कर दी हैं।

फिलहाल जीएसटी दरों में बदलाव से अब जो सामान सस्ता मिलेगा, उसमें कई आम इलेक्ट्रॉनिक उपभोक्ता वस्तुएं हैं। अब ये उत्पाद अट्ठाईस फीसद से अठारह फीसद वाली श्रेणी में कर दिए गए हैं। इसी तरह, एक हजार रुपए तक के जूते भी बारह फीसद कर श्रेणी से हटा कर पांच फीसद वाली श्रेणी में कर दिए गए हैं। यह कदम उद्योगों में जान फूंकने वाला है। पिछले काफी समय से उपभोक्ता बाजार मंदी का सामना कर रहा है। मांग नहीं बढ़ने से कारखानों के चक्के भी धीमे पड़े हुए हैं। ऐसे में यह एक तात्कालिक उपाय है। सरकार जिस उत्पाद को जीएसटी मुक्त करने के लिए सबसे ज्यादा वाहवाही लूट रही है, वह सैनेटरी नैपकिन है। यह अभी तक बारह फीसद वाली श्रेणी में था। जीएसटी परिषद अगर पहले ही विवेकसम्मत रुख अपनाती तो ऐसे उत्पाद को जीएसटी के दायरे में लाया ही नहीं जाना चाहिए था। गरीब तबके और मध्यम वर्ग के लिए रोजमर्रा इस्तेमाल की और भी चीजें हैं जिन्हें कर-मुक्त बनाया जाना जरूरी है और इससे होने वाली राजस्व हानि की भरपाई उन उत्पादों और सेवाओं पर भारी कर लगा कर होनी चाहिए जो मुट्ठी भर अमीरों के दायरे में हैं। जीएसटी की सार्थकता जनता के कल्याण में है, न कि इसे सिर्फ सरकारी खजाना भरने का जरिया बनाने में।