भारत में उपग्रह प्रक्षेपण का शुल्क बाकी देशों की तुलना में काफी कम होने की वजह से अनेक देश अब यहीं से अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण कराना उचित समझते हैं। इस मामले में एक नया कीर्तिमान रचा है, स्काईरूट नाम की एक निजी कंपनी ने पहली बार राकेट प्रक्षेपित करके। यह पहला मौका है, जब कोई निजी कंपनी उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में उतरी है।

हालांकि भारत सरकार ने दो साल पहले ही निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए भी अंतरिक्ष अनुसंधान का क्षेत्र खोल दिया था, उसी के तहत विक्रम एस नाम का यह निजी कंपनी का राकेट तैयार किया गया। इस राकेट ने दो घरेलू और एक विदेशी कंपनी के उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का बीड़ा उठाया। यह प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के दिशा-निर्देशों के तहत ही किया गया।

हालांकि जब अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में निजी कंपनियों के लिए छूट का प्रस्ताव पारित हुआ था, तब तरह-तरह के संदेह जाहिर किए गए थे। कई लोगों का मानना था कि इससे इसरो की गोपनीयता भंग होगी और यहां की तकनीक चोरी होने का खतरा बना रहेगा। मगर स्काईरूट के पहले राकेट प्रक्षेपण से वे तमाम आशंकाएं निर्मूल साबित होती नजर आ रही हैं। दरअसल, अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अभी असीम संभावनाएं हैं और अनेक वैज्ञानिक निजी स्तर पर बहुत कुछ करना चाहते हैं, मगर उन्हें इसरो और दूसरे देशों के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्रों की तरफ से उचित मदद नहीं मिल पाती।

अब ऐसे वैज्ञानिक अंतरिक्ष को अपने ढंग से खंगाल सकेंगे और नई संभावनाओं के मार्ग खोलने में मदद कर सकेंगे। जिन तीन कंपनियों के उपग्रह अभी छोड़े गए हैं, वे स्टार्ट-अप कंपनियां हैं और वे अंतरिक्ष में कचरा प्रबंधन जैसे कार्य करने को उत्सुक हैं। दरअसल, अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सरकारी स्तर पर हो रहे कार्यों में कई तरह की वैधानिक जटिलताएं होती हैं, जिसके चलते उनमें अनावश्यक देर होती रहती है या फिर वैज्ञानिक कई परियोजनाओं पर आगे नहीं बढ़ पाते। निजी क्षेत्र के अनुसंधान में ऐसी अड़चनें नहीं आतीं। इसलिए इस क्षेत्र में निजी कंपनियों के आने से निस्संदेह अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में उल्लेखनीय काम हो सकेंगे।

आज जिस तरह हर काम डिजिटल तकनीक पर निर्भर होता गया है, उसमें उपग्रहों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई है। इसलिए उपग्रह प्रक्षेपण का कारोबार ही काफी बड़ा होता गया है। फिर अंतरिक्ष के अनेक रहस्य अभी बहुत उलझे हुए हैं। अभी तक ज्यादातर जानकारियां सौरमंडल से ही जुड़ी हुई प्राप्त हो पाई हैं, जबकि इसके पार भी बड़ा संसार है। वहां तक पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती है।

ऐसे में अगर निजी कंपनियां अपने संसाधनों के जरिए इस दिशा में कुछ वैज्ञानिक योगदान देने और संभावनाओं के दोहन में मदद करती हैं, तो उन्हें प्रोत्साहन मिलना ही चाहिए। दुनिया में कुछ कंपनियां अब दूसरे ग्रहों और अंतरिक्ष की सैर की योजनाएं भी बनाने लगी हैं। अंतरिक्ष में पर्यटन का खाका तैयार है। इसलिए अगर भारत निजी कंपनियों को अंतरिक्ष में होड़ करने से रोकता, तो उसकी तरक्की में भी बाधा उपस्थित होती। इस लिहाज से इस पहले प्रक्षेपण ने उम्मीद का नया क्षितिज खोला है।