बहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पिछले चार साल की जो उपलब्धियां गिनार्इं, वे देशवासियों के लिए उम्मीद पैदा करने वाली हैं। प्रधानमंत्री ने भविष्य का खाका भी देश के सामने रखा। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत ने पिछले सात दशकों में काफी कुछ हासिल किया है और यह दुनिया में एक ताकतवर देश के रूप में उभरा है। चाहे अर्थव्यवस्था के मामले में हो या फिर अंतरिक्ष, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, आईटी और ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में, देश का डंका बजा है। बयासी मिनट के संबोधन में प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछली सरकारों से अलग और लीक से हटते हुए उनकी सरकार एक प्रतिबद्धता के साथ देश को आगे ले जाने के लिए किस तेजी से काम कर रही है। उन्होंने देश के दस करोड़ परिवारों को पांच लाख रुपए सालाना बीमा देने के लिए ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ का एलान किया। यह महत्त्वाकांक्षी योजना दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन 25 सितंबर से लागू होगी। यह देखने की बात होगी कि इस मद में प्रति व्यक्ति कितना खर्च किया जाएगा और उसका कितना लाभ आम लोगों को मिल पाएगा।

देश में महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ने की जिस तरह की शर्मनाक खबरें आ रही हैं, उनसे भी प्रधानमंत्री व्यथित दिखे। उन्होंने बलात्कारियों को मौत की सजा देने की बात कही। कुछ राज्यों ने तो नाबालिगों से बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा देने का कानून भी बना दिया है। मुसलिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए सरकार ने पहल करने का जो साहस दिखाया, वैसा पहले किसी सरकार ने दिखाया हो, याद नहीं पड़ता। आज महिलाएं देश के विकास में बराबर की भागीदार बन रही हैं, उन्हें बराबरी के हक, न्याय और पूरा सम्मान मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री का ऐसा भरोसा महिलाओं में विश्वास पैदा करने वाला है। लेकिन हैरानी की बात है कि महिला आरक्षण के बारे में हमारे नीति-निर्माता चुप हैं। कश्मीर समस्या के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने जिस तरह गले लगा कर हल की ओर बढ़ने की बात कही, वह एक नई उम्मीद पैदा करती है। देश में पिछड़े वर्ग के विकास के लिए भी हाल में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की पहल का भी जिक्र भाषण में था। पर दुख की बात है कि आजादी के सात दशक बाद भी पिछड़े, कमजोर और शोषित तबके की स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया है।

अर्थव्यवस्था का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत दुनिया की एक मजबूत आर्थिक ताकत बनने की ओर अग्रसर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज देश विदेशीनिवेशकों के लिए बेहतर ठिकाना साबित हो रहा है। भारत की आर्थिकी की तुलना फ्रांस जैसे देशों से हो रही है, फिर भी हमें अभी बहुत लंबा सफर तय करना है। समय-समय पर भारत की अर्थव्यवस्था को झटके लगे हैं, नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के दुष्प्रभावों से अभी तक मुक्ति नहीं मिली है। बढ़ती बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती बन कर सामने खड़ी है। इसके बावजूद दुनिया के कई दूसरे देशों की तुलना में भारत की आर्थिकी के स्तंभ अब भी मजबूत हैं। पिछले चार सालों में उपलब्धियों का मूल्यांकन इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार का शासन है। आजादी के इकहत्तर साल बाद हम कहां पहुंचे हैं, हमारे क्या लक्ष्य रहे, सरकारों ने क्या वादे किए, उसमें क्या हासिल किया, क्या नहीं कर पाए, ये सब ऐसे बिंदु हैं, जिन पर चिंतन होना चाहिए।