प्रधानमंत्री ने खालिस्तानी चरमपंथियों की भारत विरोधी गतिविधियों का मुद्दा उठाते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को भारत की चिंताओं से अवगत कराया। उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया कि खालिस्तानी चरमपंथी कनाडा में अलगाववाद को बढ़ावा और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं। राजनयिक परिसरों में तोड़फोड़ और भारतीय समुदाय तथा उनके पूजा स्थलों को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने यह बात जोर देकर कही कि दोनों देशों के संबंधों की प्रगति के लिए परस्पर सम्मान और विश्वास पर आधारित संबंध बहुत आवश्यक हैं।

कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमले और त्योहारों में खलल डालने की घटनाएं बढ़ीं

भारत पहले भी कनाडा के समक्ष खालिस्तानी चरमपंथ के उभार और उससे खड़ी होने वाली चुनौतियों का मुद्दा उठाता रहा है, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री ने जी20 की व्यस्तताओं के बीच जस्टिन ट्रूडो से इस मामले में बात की। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि हाल के दिनों में कनाडा में भारतीय समुदाय, विशेषकर राजनयिकों के खिलाफ प्रदर्शन, हिंदू मंदिरों पर हमले और दिवाली जैसे त्योहारों में खलल डालने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इस प्रकार की अधिकतर घटनाओं में खालिस्तानी चरमपंथी तत्त्वों का हाथ रहा है, वे खुलकर इन घटनाओं की जिम्मेदारी भी लेते रहे हैं।

दो साल में कई शहरों के हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़

पिछले दो साल में तो वैंकुवर, टोरंटो, सरे, ब्रैंपटन, मिसीसाग जैसे शहरों में स्थित अनेक हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ या विरुपित करने की करीब दर्जन भर घटनाएं सामने आई हैं। दरअसल, इसी साल जून में सिख फार जस्टिस संगठन से जुड़े चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की अज्ञात लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी। भारत की इकतालीस खूंखार आतंकियों की सूची में उसका भी नाम था। इसलिए कनाडा में सक्रिय खालिस्तानी चरमपंथियों ने इस हत्या के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए भारतीय उच्चायोग पर उग्र प्रदर्शन और तोड़फोड़ की थी। इसके अलावा अमृतपाल सिंह के खिलाफ पंजाब सरकार की कार्रवाई को लेकर भी कनाडा के चरमपंथी गुटों में कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली।

भारत और कनाडा के संबंध मित्रवत रहे हैं, लेकिन कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथी तत्त्व न केवल अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे, बल्कि वहां रह रहे भारतीयों को आए दिन धमकी देकर भयभीत कर रहे हैं। हिंदू मंदिरों पर हमले और भारत विरोधी रैली-कार्यक्रम आयोजित कर भारतीय व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।

खालिस्तानी संगठन दरअसल, कनाडा को अब आतंकवाद की नर्सरी में तब्दील करते और उसे अपने मुख्यालय की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। अनेक खालिस्तान समर्थक चरमपंथी संगठन कई देशों में अपनी गतिविधियां चला रहे हैं, लेकिन कनाडा में ये अधिक सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा कि संगठित अपराध, मादक पदार्थ गिरोह और मानव तस्करी के साथ ऐसी ताकतों का गठजोड़ भारत ही नहीं, कनाडा की भी चिंता का विषय होना चाहिए। हालांकि ट्रूडो ने अपनी वही पुरानी प्रतिक्रिया दोहराई कि उनका देश शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की स्वतंत्रता की हमेशा रक्षा करेगा, हिंसा को रोकेगा और नफरत के लिए अपनी धरती का इस्तेमाल नहीं होने देगा।

यही बात तो उन्होंने उस समय भी कही थी जब खालिस्तानी तत्त्वों ने भारतीय दूतावास पर प्रदर्शन कर तोड़फोड़ की थी। उसके बाद भी खालिस्तान के समर्थन में जनमत संग्रह कराया गया। स्वाभाविक ही कनाडा सरकार का यह लचीला रवैया भारतीय नेतृत्व के लिए चिंता का विषय है। लगभग चार करोड़ की आबादी वाला कनाडा स्वयं को धर्मनिरपेक्ष देश कहता है। वहां भारतीय मूल के लोगों की आबादी उसकी कुल जनसंख्या की चार फीसद है। भारतीयों की इतनी बड़ी आबादी के खिलाफ किसी भी हिंसात्मक अभियान या एजेंडे को भारत को किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।