जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में लड़कियों को स्कूटी चलाने से मना करने और यह फरमान नहीं मानने पर उन्हें जिंदा जला देने की धमकी से एक बार फिर यही जाहिर हुआ है कि धार्मिक कट्टरता और हिंसा के माहौल में महिलाओं को किस तरह के जोखिम के बीच जीना पड़ता है। एक अतिवादी युवक बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हिंसा की आग में झुलसते कश्मीर में करीब पचास लोगों की जान जा चुकी है, पुलिस और अर्धसैनिक बल हालात को सामान्य बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। वहीं ‘संगबाज’ एसोसिएशन नाम के पत्थर फेंकने वाले युवकों के एक समूह की ओर से चिपकाए गए पोस्टर में कई और बातों के अलावा दुकानदारों, वेंडरों और बैंकों को अपना प्रतिष्ठान तब तक नहीं खोलने की चेतावनी दी गई है, जब तक कश्मीर में ‘लड़ाई’ खत्म नहीं हो जाती। सवाल है कि जिस कश्मीर के हक की लड़ाई का वे दावा कर रहे हैं, क्या उसमें महिलाओं की यही जगह होगी? महज स्कूटी चलाने के एवज में जिंदा जला देने की धमकी देकर वे ‘अपने ही पक्ष की’ महिलाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं? अगर कश्मीर में लड़कियां स्कूटी चला रही हैं तो किस तरह वे कश्मीर के हक की उनकी कथित लड़ाई में बाधक बन रही हैं? इस तरह का खौफ पैदा कर वे कैसा कश्मीर और उसमें किस तरह का समाज चाहते हैं?
यों भी, युद्ध और आतंक या किसी भी तरह की हिंसा के माहौल का सबसे ज्यादा खमियाजा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है। अमूमन हर जगह की महिलाओं को यह त्रासदी दोनों पक्षों की ओर से झेलनी पड़ती है। फिर कट्टर धार्मिक समूह तो दुनिया में हर जगह महिला अधिकारों की मुखालफत में ही रहते हैं, मौका मिलते ही उन अधिकारों पर हमला करते हैं। शायद इसलिए कि उन हकों को सीमित करके या उन्हें छीन करके ही उनकी धार्मिक सत्ता कायम रहती है। ऐसे तत्त्व सारे धर्मों में पाए जाते हैं जिन्हें महिलाओं के सहज होकर जीने से परेशानी होती है और उन्हें अपमानित तथा नियंत्रित करने के मकसद से अक्सर पहनावे से लेकर कई दूसरी चीजों को लक्षित करके आपत्तिजनक बयान दिए जाते हैं।
जम्मू-कश्मीर में चरमपंथियों ने पहले भी महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई में बाधा डालने से लेकर कई दूसरी धमकियों के जरिए उन पर नियंत्रण करने कोशिश की है। लेकिन तमाम विपरीत हालात के बावजूद आज कश्मीर में बड़ी तादाद में लड़कियां उच्च शिक्षा में भी दखल दे रही हैं। विडंबना यह है कि चारदिवारी से बाहर निकल कर सड़क पर स्कूटी चलातीं या अपने भरोसे अपने काम निपटातीं, पढ़ती-लिखती जिन लड़कियों को एक आधुनिक और विकसित समाज की ओर कदम बढ़ाते चेहरों के तौर पर देखा जाना चाहिए, उन्हें डरा कर फिर से घर में कैद करने की कोशिश हो रही है। हमारे संविधान में नागरिक अधिकार समान रूप से सबको दिए हैं। किसी भी संगठन को इन अधिकारों को कुचलने की इजाजत नहीं दी सकती। लिहाजा, स्कूटी चलाने वाली लड़कियों और उनके परिवारों की खातिर धमकी भरे पोस्टर जारी करने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ शीघ्र कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
