अनेक अध्ययनों से यह तथ्य सामने आ चुका है कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ बच्चों की सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं। इससे बीमारियां पनपती हैं। ऐसे रोगों का तत्काल पता नहीं चलता और ये कई बार खतरनाक शक्ल अख्तियार कर लेते हैं। इस समस्या के चुपचाप अपने पांव पसारने की एक वजह यह भी है कि स्कूलों के आसपास और गली-मुहल्लों में आसान पहुंच के चलते बच्चे इनकी ओर आकर्षित होते हैं।

इस समस्या को बार-बार रेखांकित किए जाने के बावजूद अब तक स्कूलों के आसपास डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की बिक्री पर पाबंदी लगाने के निर्देशों पर अमल नहीं हो सका है। करीब डेढ़ साल पहले उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से कहा था कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले स्कूलों में और उनके आसपास डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाए। लेकिन सरकार के रवैए और कामकाज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शुक्रवार को एक बार फिर इस मसले पर हुई सुनवाई के दौरान उसने लाचारी जताते हुए कुछ और वक्त दिए जाने की गुहार लगाई। अदालत ने इस पर रोक लगाने के लिए सरकार को और तीन महीने का वक्त दे दिया है। पर इस मामले में हर बार सरकार के वक्त मांगने के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है!

डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर रोक लगाने को लेकर दलील दी जाती है कि भागदौड़ भरी जिंदगी में फास्ट फूड यानी झटपट तैयार होने वाले या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ कई तरह की झंझटों से छुटकारा दिलाते हैं। लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि खाने-पीने की ऐसी चीजों का बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

एक पहलू यह भी है कि महानगरीय जीवन में हैसियत के दिखावे और बच्चों से प्यार-दुलार की होड़ में तुरंता भोजन के प्रति उनकी ललक पूरी करने की प्रवृत्ति बढ़ती गई है। फिर, विज्ञापनों में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों को आधुनिक जीवनशैली के पर्याय के तौर पर पेश किया जाता है। इन सबका सीधा असर बच्चों पर पड़ता है और वे कई बार जरूरत न होने पर भी ये चीजें खरीद कर खाते हैं।

जबकि अनेक अध्ययन बता चुके हैं कि इन खाद्य पदार्थों से न सिर्फ मोटापा बढ़ता है, बल्कि मधुमेह, पथरी, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी बीमारियां कम उम्र के बच्चों तक को अपनी चपेट में ले रही हैं। देश के विभिन्न स्कूलों में हुए अध्ययनों से यह भी उजागर हो चुका है कि तुरंता आहार खाने वाले बच्चों का स्वभाविक विकास बाधित होता है। विचित्र है कि स्कूलों में एक ओर बच्चों को पौष्टिक भोजन के बारे में पढ़ाया-बताया जाता है, वहीं दूसरी ओर परिसर की कैंटीन में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ उपलब्ध होते हैं। जाहिर है, स्कूलों के आसपास खाने-पीने की ऐसी चीजों की बिक्री को खुला छोड़ना बच्चों की सेहत से खिलवाड़ करना है। अगर सरकार को इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा है, तो उसे तुरंत व्यावहारिक कदम उठाने चाहिए।

 

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