सिगरेट और दूसरे तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर खतरे की सचित्र चेतावनी छापने और उसका आकार बढ़ाने को लेकर पिछले लगभग एक दशक से जद्दोजहद चलती रही है। करीब साढ़े चार महीने पहले तंबाकू विरोधी अभियान का चेहरा रही और तंबाकूजनित कैंसर से जान गंवाने वाली सुनीता तोमर ने मौत से पहले प्रधानमंत्री को एक पत्र भी लिखा था।
यह हैरानी की बात है कि हमारे अनेक राजनीतिक अलग-अलग और बेतुकी दलीलें देकर सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर खतरे की चेतावनी देने वाले चित्र छापने से रोकने की कोशिश करते रहे हैं। इनमें एक दलील यह है कि इस कवायद से सिगरेट-बीड़ी के कारोबार पर नकारात्मक असर पड़ेगा और इसका खमियाजा तंबाकू की खेती पर निर्भर लोगों को भुगतना होगा।
हालांकि लाखों लोगों की सेहत के लिए खतरनाक साबित होने वाले किसी सामान की बिक्री को इस तर्क पर जायज नहीं ठहराया जा सकता। इस मसले पर सिगरेट और दूसरे तंबाकू उत्पादों पर प्रस्तावित कानून से संबंधित संसदीय समिति ने कृषि मंत्रालय से राय मांगी थी। इसके जवाब में मंत्रालय ने साफतौर पर कहा है कि उसे तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर सचित्र चेतावनी का आकार पचासी फीसद करने पर कोई एतराज नहीं है।
जहां तक तंबाकू लॉबी की इस दलील का सवाल है कि तंबाकू की खेती में लगे किसानों और मजदूरों की आजीविका प्रभावित होगी, मंत्रालय ने वैकल्पिक फसलों का पूरा खाका पेश कर दिया है। जो किसान और मजदूर अपनी रोजी-रोटी की खातिर स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह तंबाकू उगाने पर निर्भर हैं, उन्हें उन फसलों की खेती को अपने रोजगार का आधार बनाने में क्यों परेशानी होगी जो मनुष्य के जीवन के लिए जरूरी हैं!