पिछले महीने जब शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक के दौरान नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ रूस के उफा शहर में मिले थे, तभी यह तय हो गया था कि दोनों तरफ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जल्दी ही मिलेंगे। लेकिन कुछ दिनों से यह अटकल लगाई जाने लगी थी कि शायद पाकिस्तान उफा में हुए उस निर्णय से कदम पीछे खींच लेगा। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज की घोषणा ने इस अटकल पर विराम लगा दिया है। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ होने वाली बातचीत के लिए तेईस अगस्त को दिल्ली जाने की बात कही है। इसे फिलहाल गतिरोध टूटने की शुरुआत भर माना जाएगा। पिछले साल अगस्त में दोनों पक्षों के विदेश सचिवों की बातचीत होनी थी।

पर भारत ने वह बैठक रद्द कर दी, इस बिना पर कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं से मुलाकात क्यों की। इसके बाद संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाओं की वजह से तनाव और बढ़ा। इसकी झलक पिछले साल नवंबर में सार्क के काठमांडो शिखर सम्मेलन में भी दिखी, जब मोदी और शरीफ के बीच कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हो सकी। वे एक-दूसरे से कतराते रहे। आखिरी क्षणों में वे कुछ बातचीत करने और साथ दिखने के लिए राजी हुए, तो इसका श्रेय सम्मेलन के मेजबान देश के प्रधानमंत्री सुशील कुमार कोइराला को था।

उफा में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन मेजबान थे और उन्होंने भी काफी हद तक वैसी ही भूमिका निभाई। मगर इस बार मोदी और शरीफ खुद भी मिलने और दुनिया को अपने मिलन का संदेश देने को उत्सुक थे। एक तो इसलिए कि शंघाई सहयोग संगठन में पूर्ण सदस्यता देते वक्त भारत और पाकिस्तान के बीच रह-रह कर उभर आने वाले तनाव को लेकर चिंता थी। दूसरे, अगले साल इस्लामाबाद में सार्क की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री मोदी को भी शिरकत करनी है। तीसरे, तमाम देश खासकर अमेरिका और यूरोप यही चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान बातचीत की मेज पर आएं। भारत यह धारणा बनने देना नहीं चाहेगा कि गतिरोध हमारी तरफ से है।

लिहाजा, मोदी ने अपने ढाका दौरे के दौरान आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को कठघरे में भले खड़ा किया, उनके एक-दो मंत्रियों ने म्यांमा की सीमा में उग्रवादी शिविरों पर कार्रवाई के बाद पाकिस्तान को संभल जाने की चेतावनी दी और हाल की आतंकवादी घटनाओं के मद्देनजर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को कसूरवार ठहराया, पर बातचीत की संभावना को भारत सरकार खारिज नहीं कर सकी।

पाकिस्तान से बातचीत होनी चाहिए। यह सही है कि ऐसी बैठकों ने बहुत बार निराशा ही पैदा की है। पर कई बार संबंध सुधरने के आसार भी वार्ताओं के दौरान ही दिखे हैं। उफा में मोदी-शरीफ की मुलाकात से दोनों मुल्कों के बीच करीब साल भर से चल रही संवादहीनता का सिलसिला टूटा जरूर, पर यह मान लेना अति उत्साह होगा कि डोभाल और अजीज की बैठक से जल्दी ही समग्र वार्ता की बहाली हो जाएगी। तेईस अगस्त की संभावित बैठक आतंकवाद और सुरक्षा से संबंधित मसलों पर केंद्रित होगी। अगर यह किसी हद तक सकारात्मक रही, तो आगे बातचीत के एजेंडे का विस्तार हो सकता है।