आमतौर पर चुनाव के ठीक पहले वाले आम बजट में हर वर्ग के लोगों को खुश करने का प्रयास देखा जाता है, पर इस बार ऐसा नहीं हुआ। राजकोषीय घाटे और महंगाई पर काबू पाने तथा औद्योगिक क्षेत्र में बेहतरी लाने की चिंता अधिक दिखाई दी। माना जा रहा था कि इस बार के बजट में आयकर की सीमा कुछ बढ़ेगी, पर ऐसा नहीं हुआ। उसका दायरा यथावत रखा गया। अलबत्ता चिकित्सा खर्च में चालीस हजार रुपए तक कटौती की राहत पहुंचाई गई है। पेंशनभोगी लोगों को भी कुछ सहूलियत दी गई है। पर जिस गति से महंगाई बढ़ी है, उसमें इन राहतोंको नाकाफी माना जा रहा है। आयातित वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, वाहनों आदि पर कर की दर बढ़ाई गई है। इससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद की जा सकती है। अच्छी बात है कि छोटे और घरेलू उद्यमों को ताकतवर बनाने के लिए करों में छूट दी गई है। अब ढाई सौ करोड़ रुपए तक का कारोबार करने वाले उद्यमों को तीस के बजाय पच्चीस फीसद कंपनी कर चुकाने होंगे। इस क्षेत्र की स्थिति काफी समय से चिंताजनक बनी हुई है, इसलिए नए बजटीय प्रावधानों से उनमें कुछ गति आने की संभावना बनती है। सबसे अधिक जोर कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास पर दिया गया है। कृषि क्षेत्र में सौ करोड़ रुपए तक का कारोबार करने वाली कंपनियों को पांच वर्ष के लिए शत प्रतिशत कटौती का प्रावधान किया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गांवों में एक करोड़ घर बनाने का प्रावधान है।

इसी तरह रेल बजट में किराया बढ़ोतरी के बजाय रेलवे के संचालन और सुविधाओं में बेहतरी लाने और विस्तारीकरण पर जोर दिया गया है। इसमें सभी पटरियों को ब्रॉडगेज और स्टेशनों को उन्नत तकनीक से लैस करने पर जोर दिया गया है। आज जिस तरह दूसरे क्षेत्रों में उन्नत तकनीक के उपयोग से बेहतरी लाने का प्रयास दिखाई देता है, रेलवे पिछड़ा नजर आता है, ऐसे में इस बजटीय प्रावधान से कुछ बेहतरी की उम्मीद जगती है। हालांकि लंबे समय से लटकी परियोजनाओं को पटरी पर लाने, गाड़ियों की सुस्त रफ्तारी दूर करने और मुसाफिरों की मुश्किलों को दूर करना सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। इस दिशा में उसे कहां तक कामयाबी मिलती है, इस रेल बजट की सफलता काफी कुछ इस पर निर्भर करेगी।

बेशक बजट के जरिए लोगों को लुभाने का प्रयास नहीं किया गया, पर कुछ प्रावधानों को लेकर एतराज हो सकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य के मद में उपकर तीन से बढ़ा कर चार फीसद किया जाना और शेयर बाजार में एक लाख रुपए से अधिक के लंबी अवधि के निवेश पर लाभ को करयोग्य बना दिया जाना कुछ लोगों को खटक रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरी के नाम पर बरसों से उपकर वसूला जा रहा है। ताजा प्रावधानों से इन क्षेत्रों में स्थिति कुछ बेहतर होने की उम्मीद बनी है। इसी तरह शेयर बाजार में लंबी अवधि के निवेश को इसलिए बढ़ावा दिया जाता है कि उससे कंपनियों की स्थिति मजबूत होती और देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ता है। पर उसे भी करयोग्य बना दिया गया है। हालांकि इससे शेयर बाजार में गिरावट दर्ज हुई, पर यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। इन सबके बावजूद राजकोषीय घाटा बढ़ने का ही अनुमान है। पर उम्मीद है, इससे सरकार महंगाई रोकने, लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने, रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराने के अपने लक्ष्य के करीब पहुंच सकेगी।