अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय ने अपने एक शोध छात्र मन्नान वानी के गायब होने और आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन में शामिल होने की खबर के बाद उसे निष्कासित कर दिया। यह वाकया काफी चिंताजनक है। अगर इस घटना में सच्चाई पाई जाती है तो साफ है कि अब आतंकी संगठनों की पहुंच विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले युवाओं तक हो रही है! इसके अलावा, पिछले कई दिनों से मन्नान वानी के गायब होने की खबरें तो आर्इं हैं, लेकिन खुद जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुनीर खान ने राय जाहिर की है कि अभी यह कहना जल्दीबाजी होगी कि गायब हुआ वानी हिज्बुल में शामिल हो ही गया है। दरअसल, वानी के गायब होने और हिज्बुल में शामिल होने की जो बातें की जा रही हैं, उनका आधार सोशल मीडिया में जारी एक तस्वीर है जिसमें उसे खतरनाक हथियारों के साथ दिखाया गया है। फिलहाल उसके लापता होने और उसके बारे में सामने आए संदेहों की जांच जारी है और पुलिस किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है।
गौरतलब है कि मन्नान वानी अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से ‘स्ट्रक्चरल एंड जियो-मॉर्फोलॉजिकल स्टडी आॅफ लोलाब वैली, कश्मीर’ विषय पर पीएचडी कर रहा है। उसे 2016 में ‘वाटर, एनवायर्नमेंट, इकोलॉजी एंड सोसाइटी’ विषय पर बेहतरीन रिपोर्ट देने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सम्मानित किया गया था। मगर अच्छे शैक्षिक रिकॉर्ड के बावजूद अगर मन्नान वानी के किसी आतंकी संगठन में शामिल होने की खबर सच पाई जाती है तो यह सोचने का समय है कि किन हालात में ऐसे प्रतिभाशाली युवा आतंकवाद के अंधेरे में कदम बढ़ा देते हैं। यों पिछले कुछ समय से आतंकी संगठनों के निशाने पर वे युवा ज्यादा हैं जो अच्छी शिक्षा हासिल कर रहे हैं या किसी दूसरे क्षेत्र में प्रतिभाशाली माने जाते हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए जब फुटबॉल का एक बेहतरीन खिलाड़ी रहा युवक एक आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया। पर जब उसके परिवार ने उससे वापस चले आने की भावुक गुजारिश की तो वह लौट आया। लेकिन सच यह भी है कि कई ऐसे युवक आतंकी संगठनों के जाल में इस कदर उलझ जाते होंगे कि उनके सामने लौटने का कोईरास्ता नहीं बचता होगा।
हालांकि पिछले कुछ महीनों के दौरान जम्मू-कश्मीर में सरकार, पुलिस और सुरक्षा बलों की ओर से स्थानीय लोगों से संवाद की कोशिशों का सकारात्मक असर सामने आ रहा है। ऐसे कई मामले सामने आए, जिनमें किसी परिवार ने अपने उस बच्चे से वापस लौट आने की गुजारिश की, जो किन्हीं हालात में आतंकवादी संगठनों के बहकावे में आ गया था। इसका असर भी हुआ और कई युवक आतंकी संगठनों के चंगुल से खुद को छुड़ा कर घर लौट आए। निश्चित रूप से स्थानीय लोगों को साथ लेकर की गई पहलकदमी जनजीवन को सामान्य बनाने और आतंकवाद की समस्या का स्थायी हल निकालने में मददगार साबित हो सकती है। इसलिए आतंकवादी गिरोहों के खिलाफ सख्ती के साथ-साथ जरूरत इस बात की भी है कि कश्मीरी समाज से संवाद कायम कर उसका भरोसा हासिल किया जाए। अगर स्थानीय लोग आतंकी संगठनों के खिलाफ खड़े हो जाएं तो सरकार, पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए इस समस्या से पार पाने का रास्ता ज्यादा आसान हो जाएगा।