इसमें कोई दोराय नहीं कि जब दुनिया भर में कोरोना विषाणु से उपजी महामारी की चुनौती खड़ी हुई थी तब देश में इसका सामना करने के लिए सरकार ने यथासंभव प्रयास किए। मगर उस दौरान कानूनी तौर पर कुछ सीमाएं भी उजागर हुईं, जिसकी वजह से हालात का सामना करने में कुछ अड़चनें पेश आईं। हालांकि सरकार ने जरूरत के मुताबिक कुछ नए कानूनी उपाय भी किए, मगर भविष्य में वैसी स्थिति से निपटने के लिए और बेहतर व्यवस्था की जरूरत पड़ सकती है।
शायद यही वजह है कि विधि आयोग ने महामारी रोग अधिनियम में कुछ ‘अहम खामियों’ को चिह्नित करते हुए सरकार से सिफारिश की है कि या तो मौजूदा कमियों को दूर करने के लिए कानून में संशोधन किया जाए या फिर भविष्य की महामारियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक व्यापक कानून लाया जाए। हालांकि आयोग का मानना है कि महामारी के दौरान सरकार तेजी से बदलते हालात में तुरंत काम कर रही थी, मगर यह महसूस किया गया कि कुछ नए कानूनों के जरिए संकट से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता था।
यों जब वैश्विक स्तर पर कोरोना को महामारी घोषित किया गया था, तब उसके विषाणु के संक्रमण के प्रसार को रोकने के मकसद से समूचे देश में ‘सामाजिक दूरी’ बनाए रखने से लेकर मास्क लगाने जैसे नियम लागू किए गए थे। संक्रमण का जोर ज्यादा होने पर आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत पूर्णबंदी भी लगाई गई थी। मगर इस दौरान अपनाए गए उपायों और शब्दावली की परिभाषा स्पष्ट नहीं थी।
उसी उथल-पुथल भरे दौर में खासतौर पर स्वास्थ्यकर्मियों के सामने आने वाली चुनौतियों के मद्देनजर सन 2020 में महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन किया गया था। मगर वे संशोधन कम पड़ गए और कई कमियां कायम रहीं। पिछले कुछ समय से दुनिया भर में भविष्य में आने वाली महामारियों को लेकर जिस स्तर की चिंता जाहिर की जा रही है, उसमें वैसे हालात से निपटने के लिए पूर्व तैयारी वक्त का तकाजा है। इस संदर्भ में वैश्विक स्तर पर होने वाली पहलकदमियों में सहभागिता करते हुए देश और आम नागरिकों के अधिकारों का भी ध्यान रखने की जरूरत है।