मालदीव में पिछले वर्ष मोहम्मद मुइज्जू ने राष्ट्रपति चुनाव जीता, तभी साफ हो गया था कि वहां की सत्ता अब नए रास्ते पर बढ़ चली है। अब वहां हुए संसदीय चुनाव में भी मुइज्जू की पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस ने दो तिहाई से ज्यादा सीटों पर बड़ी जीत दर्ज कर ली है। इससे स्पष्ट है कि मालदीव का रुख पहले के मुकाबले बिल्कुल अलग होगा और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उस पर चीन का असर दिखेगा।
मुइज्जू की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा थी यह चुनाव
दरअसल, संसदीय चुनाव को मुइज्जू की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था। हालांकि मुइज्जू और उनकी पार्टी की राजनीति को देखते हुए पिछले कुछ महीनों के दौरान मालदीव पर चीन के हावी होने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक नहीं माना जा रहा था और वहां के संसदीय चुनाव पर उसका असर पड़ने की उम्मीद की जा रही थी। मगर ऐसा नहीं हुआ। अब मालदीव में मुइज्जू की पार्टी की भारी जीत को चीन के समर्थन और भारत के विरोध पर आधारित उनकी नीतियों पर मुहर के तौर पर देखा जाएगा।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद मुइज्जू ने भारत के प्रति अपने पूर्वाग्रहों को छिपाया नहीं और ‘भारत को बाहर करो’ की नीति पर चलते हुए भारतीय सैनिकों को वापस भेजना शुरू कर दिया था। दूसरी ओर, पर्यटन से जुड़ी अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भारत पर अपनी निर्भरता को कम करने के साथ-साथ मालदीव ने तुर्किए और अन्य कई देशों के साथ समझौते किए। खासकर चीन के प्रति मुइज्जू का झुकाव सभी जानते हैं।
उनके राष्ट्रपति बनने के बाद मालदीव की कई बड़ी परियोजनाओं का काम चीन की कंपनियों को मिल चुका है। मालदीव और चीन के बीच सैन्य समझौता भी हुआ था। सच यह है कि चीन प्रकारांतर से मालदीव पर अपना नियंत्रण कायम करना चाहता है और इसी वजह से उसे कुछ विशेष महत्त्व देता है। अब वहां की संसद में अपनी पार्टी का बहुमत होने से देश में चीन के निवेश या अन्य सहयोग संबंधी फैसलों को लागू करने में मुइज्जू को कोई बाधा नहीं होगी। मगर मालदीव पर चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता की बात है।