मणिपुर मामले में एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाते हुए केंद्र और राज्य सरकार से स्थिति रिपोर्ट मांगी है। उसने कुछ कड़े सवाल किए हैं, जिनका जवाब देना राज्य प्रशासन के लिए आसान नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जो खो गया, वह खो गया, मगर अभी सवाल लोगों में विश्वास बहाली का है। इसके लिए सरकार क्या कर रही है, उसका ब्योरा दे।

मामला केवल दो महिलाओं का नहीं है, ऐसी अनेक महिलाओं का वहां उत्पीड़न हुआ है, उनका क्या विवरण है। उन दो महिलाओं की प्राथमिकी दर्ज करने में चौदह दिन क्यों लग गए, जिन्हें निर्वस्त्र करके घुमाने का वीडियो प्रसारित हुआ और प्रशासन तभी हरकत में क्यों आया, जब वह वीडियो प्रसारित हो गया। सरकार की तरफ से पेश वकील ने कहा कि छह हजार प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं, तब अदालत ने पूछा कि उनमें से कितनी प्राथमिकियां महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों से जुड़ी हैं।

इसका कोई स्पष्ट उत्तर सरकार के पास नहीं था। हालांकि दोनों महिलाओं से जुड़े मामले की जांच सीबीआइ ने अपने हाथ में ले ली है, मगर सर्वोच्च न्यायालय मणिपुर में हुई ऐसी तमाम घटनाओं की जांच के पक्ष में है और वह इसके लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने पर विचार कर रहा है। केंद्र सरकार ने कहा है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय अपनी निगरानी में जांच कराना चाहता है, तो उसे कोई आपत्ति नहीं है।

मणिपुर का मामला दरअसल, राज्य सरकार की लापरवाही और फिर केंद्र सरकार की शिथिलता का नतीजा है। अगर सरकारों ने इस मामले पर काबू पाने की कोशिश की होती, तो कोई कारण नहीं कि यह इतने लंबे समय तक चलता रहता और वहां करीब दो सौ लोगों की जान चली जाती, हजारों लोगों को बेघर जिंदगी गुजारने पर मजबूर होना पड़ता।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह मत कहिए कि वहां एक समुदाय के खिलाफ हिंसा हुई, संदेश यह जाना चाहिए कि वहां एक भी समुदाय के खिलाफ हिंसा से कड़ाई से निपटा जाएगा। लोगों में संविधान के प्रति भरोसा पैदा करना बहुत जरूरी है। दरअसल, मणिपुर में पिछले करीब तीन महीने से हिंसा और आगजनी की घटनाएं हो रही हैं, मगर इस पर पूरी दुनिया में कठोर निंदा का सिलसिला तब शुरू हुआ, जब दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने का वीडियो प्रसारित हुआ। इस तरह मणिपुर में चल रही सामुदायिक हिंसा को कई लोगों ने उस वीडियो तक सीमित कर दिया है, जबकि पूरी हिंसा को लेकर ढेर सारे सवाल हैं।

अब अनेक तथ्य प्रकट हैं, जिनसे राज्य सरकार की शह और केंद्र सरकार की उदासीनता उजागर होती है। शस्त्रागार से भारी मात्रा में हथियार और कारतूस आदि लूट लिया जाना और सरकारों का इस पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना कई सवाल खड़े करता है। विपक्षी दलों ने इन तमाम सवालों को लेकर संसद में जवाब मांगा है, उनके प्रतिनिधि मणिपुर हो आए हैं।

अब सर्वोच्च न्यायालय ने जो सवाल पूछे हैं और उच्चाधिकार प्राप्त समिति से इन घटनाओं से संबंधित जांचों पर निगरानी रखने की बात कही है, उससे राज्य सरकार की लापरवाहियों, पक्षपात और हिंसा को नजरअंदाज करने के तथ्य और स्पष्ट हो सकेंगे। मणिपुर की घटना ने केंद्र सरकार को भी सांसत में डाल दिया है, पूर्वोत्तर के लोगों का भरोसा डिगा है। वहां के दूसरे राज्यों में भी तनाव की आशंका है। ऐसे में वहां तुरंत शांति बहाली के लिए व्यावहारिक कदम उठाने की उम्मीद की जाती है।