भारत और कनाडा के बीच सामान्य तौर पर अच्छे संबंध रहे हैं और समय-समय पर दोनों देश इसे मजबूती देने के लिए कई स्तर पर कूटनीतिक पहलकदमी भी करते रहे हैं। लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी भी स्थिति में संबंधों में मधुरता तभी बनी रह सकती है, जब दोनों पक्ष एक दूसरे के आंतरिक मामलों में नाहक दखल न दें और आपसी गरिमा का खयाल रखें। मुश्किल यह है कि पिछले कुछ समय से कनाडा में कुछ संगठनों की ओर से ऐसी गतिविधियां सामने आ रही हैं, जिन्हें वहां आयोजित किए जाने पर सरकार की ओर से कोई रोकटोक नहीं है, लेकिन उनका मकसद भारत को बदनाम करना होता है।
निश्चित रूप से यह स्थिति लंबे समय तक अनदेखी करने लायक नहीं है और ऐसी हरकतों पर भारत की आपत्ति का आधार भी वाजिब है। गौरतलब है कि भारत के पंजाब में एक समय हुए ‘आपरेशन ब्लू स्टार’ की उनतालीसवीं बरसी यानी छह जून से कुछ दिन पहले कनाडा के ब्रैंपटन शहर में खालिस्तान समर्थकों की ओर से पांच किलोमीटर लंबी एक यात्रा निकाली गई थी। इस दौरान एक झांकी में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी की हत्या का दृश्य दर्शाया गया था।
जाहिर है, इस तरह के प्रदर्शन की मंशा भारत को कठघरे में खड़ा करना था। लेकिन सवाल है कि अगर कनाडा भारत को एक स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में स्वीकार करता है तो वहां भारत के लिहाज से अलगाववाद की भावनाओं को मजबूती देने वाली गतिविधियों के प्रति वह आंखें कैसे मूंदे रह सकता है। कनाडा में इस प्रकृति की घटनाएं लगातार सामने आई हैं।
इसलिए भारत के विदेश मंत्री ने सही ही इस बात पर आपत्ति जताई और कहा कि कनाडा लगातार अलगाववादियों, चरमपंथियों और हिंसा का समर्थन करने वालों को फलने-फूलने का मौका दे रहा है और शायद इसके पीछे मकसद चुनावों में कुछ वोट हासिल करना है! बल्कि उन्होंने साफ शब्दों में यह भी कहा कि यह आपसी रिश्तों और कनाडा के लिए ठीक नहीं है। इस मसले पर विपक्षी दलों ने भी आपत्ति जताई है। यानी भारत की ओर से कनाडा के लिए यह स्पष्ट संदेश है कि अगर वह अपनी जमीन पर भारत विरोधी हरकतों पर रोक नहीं लगाता है या उन्हें नियंत्रित नहीं करता है तो इसके एवज में भारत को भी कोई स्पष्ट रुख अख्तियार करना पड़ेगा।
दरअसल, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो देशों के बीच सौहार्द पर आधारित संबंधों का मुख्य सूत्र यह होता है कि दोनों पक्ष एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करें और नाहक ही किसी मित्र देश को कठघरे में खड़ा किए जाने वाली गतिविधियों को अपने सीमा क्षेत्र में बढ़ावा न दे। लेकिन पिछले कुछ समय से कनाडा में भारत को लक्ष्य करके जिस तरह की कुछ गतिविधियां देखी जा रही हैं, उसमें यह सवाल स्वाभाविक ही उठता है कि क्या वहां की सरकार इन सबके प्रति उदासीन है या फिर वह जानबूझ कर ऐसा होने दे रही है।
इतना तय लगता है कि कनाडा में हाल में झांकी के जरिए अपना एजंडा दर्शाने वाले समूह किसी न किसी रूप में चरमपंथ का समर्थन करते हैं और ऐसे आयोजन से वे भारत के सामने असुविधाजनक स्थितियां पैदा करना चाहते हैं। यह छिपा नहीं है कि अलगाववाद के दंश ने भारत को किस तरह के घाव दिए हैं और उससे बाहर आने में देश को काफी जद्दोजहद करना पड़ा है। अगर कनाडा अपने सीमा क्षेत्र में ऐसी हरकतों को बेकाबू छोड़ता है, तो यह उचित नहीं है। यों भी कनाडा अगर भारत की गरिमा का खयाल रखने की बात करता है तो ऐसा करते हुए उसे दिखना भी चाहिए।