भारत, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के बीच हुआ मोटर वाहन समझौता निश्चय ही दक्षिण एशिया में आवाजाही और व्यापार बढ़ाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इस समझौते का प्रस्ताव पिछले साल नवंबर में सार्क के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा था और इसमें सार्क के सभी देशों को शामिल करने की बात सोची गई थी। लेकिन पाकिस्तान के विरोध के चलते वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। पाकिस्तान का एतराज यह था कि इस समझौते की बाबत सभी सदस्य-देशों की सहमति नहीं ली गई है। पर बाद में भी यही जाहिर हुआ कि इसमें फिलहाल उसकी दिलचस्पी नहीं है। पाकिस्तान की ना-नुकुर को देखते हुए आखिरकार भारत ने उसकी रजामंदी का इंतजार करना ठीक नहीं समझा और वह सार्क के जिन देशों के साथ संभव लगा, मोटर वाहन समझौते को अमली जामा पहनाने में जुट गया। हफ्ते भर पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी। दो दिन पहले भूटान की राजधानी थिंपू में मेजबान देश के अलावा नेपाल, बांग्लादेश और भारत के परिवहन मंत्रियों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके फलस्वरूप समझौते में शामिल देशों के बीच निजी वाहनों, बसों-टैक्सियों और ट्रकों के निर्बाध आवागमन का रास्ता साफ हो गया है। जाहिर है, इससे जहां सड़क मार्ग से यात्रा करने की सहूलियत बढ़ी है, वहीं आपसी व्यापार के अवसर भी बढ़ेंगे।
सार्क के गठन के लंबे समय बाद भी दक्षिण एशियाई देशों के बीच आपसी कारोबार काफी सिमटा रहा है। यह उनके कुल विदेश व्यापार का केवल पांच फीसद है। जबकि दक्षिण-पूर्व एशिया यानी आसियान के सदस्य-देशों का आपसी कारोबार उनके कुल विदेश व्यापार के पच्चीस फीसद से ज्यादा है। इस मामले में आसियान की बराबरी सार्क कब कर पाएगा, कभी कर पाएगा या नहीं, कहना मुश्किल है। लेकिन ताजा मोटर वाहन समझौते ने एक बड़ी कमी दूर करने की शुरुआत जरूर की है। इससे जहां नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के साथ भारत का आयात-निर्यात बढ़ेगा, वहीं बाकी देशों के बीच भी। साथ ही इन देशों के बीच सड़क परिवहन और माल ढुलाई की लागत कम होगी। भारत को एक अतिरिक्त लाभ यह होगा कि पूर्वोत्तर और बाकी देश के बीच आवाजाही और माल ढुलाई पर पहले से कम खर्च आएगा। बांग्लादेश के साथ हाल में हुए भू-सीमा समझौते और दो नई बस सेवाओं के चलते पूर्वोत्तर से सड़कमार्ग के जरिए संपर्क पहले से आसान हुआ है। मोटर वाहन समझौते से इस प्रक्रिया को और बढ़ावा मिलेगा। बरसों पहले भारत ने लुक ईस्ट यानी पूरब की ओर देखो नीति की घोषणा की थी, जिसे प्रधानमंत्री मोदी एक्ट ईस्ट कहना पसंद करते हैं। उस नीति के लिए भी यह समझौता एक बड़े प्रोत्साहन का काम करेगा।
विदेश व्यापार का अधिकतर ढांचा ऐसा है कि उससे क्षेत्रीय व्यापार को अपेक्षित प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है। लेकिन मोटर वाहन समझौते की एक बड़ी खूबी यह है कि इससे सबसे ज्यादा विभिन्न देशों के सरहदी इलाकों के स्थानीय व्यापार में तेजी आएगी और छोटे तथा मझोले व्यापारियों को अधिक लाभ होगा। सोमवार को हुए करार की ही तर्ज पर थाईलैंड और म्यांमा को शामिल कर भारत एक और समझौते के लिए प्रयासरत है। इससे जहां कई पुराने मार्ग फिर से खुलेंगे, वहीं कई नए रास्ते भी निकलेंगे। आपसी व्यापार के अलावा कूटनीतिक लिहाज से देखें, तो ये प्रयास इन देशों के बीच विश्वास बहाली की प्रक्रिया को भी बढ़ाने वाले हैं। पर मोटर वाहन समझौते से जो शुरुआत हुई है वह कुछ और कदम उठाने की भी मांग करती है। मसलन, वीजा के नियम सरल बनाने होंगे। वीजा उदारीकरण के अलावा, आपसी व्यापार से जुड़ी ढांचागत सुविधाओं पर ध्यान देना होगा, बैंकिग सुविधाएं मुहैया करानी होंगी।
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