विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह के ताजा बयान ने उनके इस्तीफे को लेकर लगाई जा रही अटकलों पर विराम लगा दिया है। पर असल सवाल है कि उन्होंने क्यों नाहक एक विवाद पैदा किया। पाकिस्तान दिवस पर पाकिस्तानी उच्चायोग में हुए समारोह में शिरकत करने के एक रोज बाद वीके सिंह ने ट्विटर पर एक के बाद एक कई टिप्पणियां कीं। इसमें उन्होंने उस समारोह का सीधा जिक्र नहीं किया, पर परोक्ष रूप में नाराजगी जाहिर की। उनकी इन टिप्पणियों के चलते खासा विवाद खड़ा हो गया और सरकार की किरकिरी हुई। यह पहला मौका नहीं है जब उन्होंने अपने नेतृत्व को परेशानी में डाला हो। एक समय नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल उठा कर वे पहले भी भाजपा-नेतृत्व को असहज स्थिति में डाल चुके थे। ट्विटर पर लिखी उनकी बातों से ऐसा लग रहा था कि पाकिस्तानी उच्चायोग में हुए समारोह में शिरकत करना उन्हें रास नहीं आया, सिर्फ ड्यूटी के दबाव में उन्हें ऐसा करना पड़ा। सांकेतिक रूप से नाखुशी जताने की वजह शायद यह रही हो कि उस समारोह में हुर्रियत के नुमाइंदे भी मौजूद थे।

वीके सिंह सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर वहां गए थे। और प्रधानमंत्री की इच्छा से ही यह हुआ होगा। फिर उनके नाराजगी जताने की क्या तुक थी? वीके सिंह का व्यक्तिगत नजरिया जो हो, मगर मंत्री के रूप में उनके व्यवहार और सरकार के फैसले में संगति दिखनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवाज शरीफ को पत्र लिख कर पाकिस्तान दिवस की बधाई दी और उनसे कहा कि शांतिपूर्ण माहौल में आपसी बातचीत से ही द्विपक्षीय मसले सुलझाए जा सकते हैं। मोदी को भी मालूम रहा होगा कि पाकिस्तानी उच्चायोग के समारोह में हुर्रियत के नुमाइंदे शामिल होने वाले हैं। फिर भी उन्होंने वीके सिंह को उस समारोह में भेजा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। वीके सिंह ने भी अपनी सफाई में कहा है कि सरकार की तरफ से किसी के पाकिस्तानी उच्चायोग के ऐसे समारोह में हिस्सेदारी करने की परिपाटी रही है और उन्होंने मंत्री के तौर पर इसी का निर्वाह किया। फिर उन्होंने ट्विटर के जरिए ऐसी बातें क्यों कहीं, जैसे वे खेद जता रहे हों। विदेश मंत्रालय ने हुर्रियत नेताओं को समारोह में आमंत्रित करने पर पाकिस्तानी उच्चायोग की खूब खिंचाई की, भाजपा ने भी जमकर हमला बोला। क्या यह दिखाने के लिए कि सरकार के पहले के रुख में कोई फर्क नहीं आया है?

पिछले साल हुर्रियत नेताओं से पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित के मुलाकात करने पर मोदी सरकार ने पाकिस्तान से विदेश सचिव स्तर की होने वाली बातचीत रद््द कर दी थी। इस बार सरकार ने वैसी घोषणा नहीं की है न उसका इरादा जताया है। इसलिए वीके सिंह की ट्विटर-टिप्पणियां और भी बेतुकी मालूम पड़ती हैं। विवाद में घिरने के बाद उन्होंने सारा दोष मीडिया पर मढ़ दिया है, यह कहते हुए कि उनकी बातों का गलत अर्थ लगाया गया। इसी के साथ उन्होंने सरकार के रुख के साथ अपनी प्रतिबद्धता और प्रधानमंत्री के प्रति वफादारी का इजहार किया है। इस तरह उन्होंने सारे विवाद को ठंडा करने की कोशिश की है। लेकिन यह विवाद मीडिया की देन नहीं था, इसके लिए वीके सिंह ही जिम्मेवार हैं। वे ऐसे मंत्रालय की जिम्मेवारी से जुड़े हैं जिसका काम अन्य देशों से संबंधों का स्वरूप और दिशा तय करना है। यह जिम्मेदारी निजी पूर्वग्रहों और आवेश में आकर नहीं निभाई जा सकती।

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