कई और भाजपा नेताओं के अलावा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी शुक्रवार को आनंदपुर साहिब जाना था। पर वे नहीं गर्इं, पीठ में दर्द का हवाला देकर। यात्रा रद््द करने के पीछे क्या सचमुच यही वजह रही होगी? अगर वे आनंदपुर साहिब जातीं तो तय था कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मुखातिब होना पड़ता। ऐसा लगता है कि वसुंधरा राजे इस स्थिति से बचना चाहती रही होंगी। उनकी असल तकलीफ यह रही होगी कि ललित मोदी प्रकरण में शाह ने उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया। यही नहीं, यह हिदायत भी दे दी कि वे अपने समर्थक विधायकों को दिल्ली न भेजें। इससे जाहिर है कि ललित मोदी से जुड़े विवाद के चलते जहां भाजपा को लगातार विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं पार्टी के भीतर भी घमासान के लक्षण दिखने लगे हैं। सुषमा स्वराज के बचाव में पार्टी एकजुट नजर आई थी, पर उसे वसुंधरा राजे का बचाव करते नहीं बन रहा है। यह अलग बात है कि भाजपा ने फिलहाल वसुंधरा राजे को न हटाने की बात कही है।
ललित मोदी को पुर्तगाल जाने के लिए ब्रिटेन के आव्रजन विभाग की इजाजत दिलाने में सुषमा स्वराज की सिफारिश को पार्टी ने मानवीय आधार पर की गई मदद करार दिया था। पर राजे के मामले में पार्टी ऐसा कोई तर्क या बहाना नहीं गढ़ पा रही है। दरअसल, ललित प्रकरण में वसुंधरा राजे की भूमिका ने ऐसी किसी भी दलील के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। खुद ललित मोदी ने खुलासा किया है कि 2011 में वसुंधरा राजे ने उन्हें पुर्तगाल जाने की अनुमति दिलाने के सिलसिले में गवाह के तौर पर एक हलफनामा दिया था। राजे ने यह समर्थन यह सुनिश्चित करते हुए दिया था कि इस बारे में भारत के अधिकारियों को पता न चले। गोपनीयता की शर्त ने और वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह की कंपनी में ललित मोदी के संदिग्ध ढंग से किए गए साढ़े ग्यारह करोड़ रुपए से ज्यादा के निवेश ने जहां ‘मानवीय आधार’ की भाजपा की दलील की हवा निकाल दी है, वहीं राजे और पार्टी, दोनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
गौरतलब है कि दुष्यंत सिंह झालावाड़ से भाजपा के सांसद भी हैं। उनकी कंपनी के एक शेयर की कीमत दस रुपए थी। पर मोदी ने करीब छियानबे हजार रुपए की दर से आठ सौ पंद्रह शेयर खरीदे थे। इससे साफ हो जाता है कि जिसे पुराना पारिवारिक रिश्ता बताया जा रहा था, उसके कुछ और भी पहलू रहे हैं। आइपीएल के पूर्व आयुक्त ललित मोदी पर काले धन को सफेद करने, मैच फिक्ंिसग और सट््टेबाजी में लिप्त रहने, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के उल्लंघन जैसे अनियमितता के ढेरों संगीन आरोप हैं। यही नहीं, मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी में अपनी भूमिका उजागर होने के बाद वे देश से भाग गए।
ललित मोदी ने दो दिन पहले कहा कि जान पर खतरा होने के कारण उन्होंने ब्रिटेन में शरण ले रखी है। पर मुंबई पुलिस का कहना है कि उन्हें जान का कोई खतरा नहीं था। मोदी ने अब तक जांच में सहयोग नहीं किया है। इसलिए भी देश से बाहर रहने के पीछे अपनी सुरक्षा संबंधी उनकी दलील में कोई दम नहीं है। एक भगोड़े आरोपी को, जिसकी प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग को तलाश रही है, पुर्तगाल जाने की इजाजत दिलाने के लिए वसुंधरा राजे लंदन पहुंच गर्इं। और उन्होंने मदद की गोपनीयता की शर्त पर। तब वे विधानसभा में विपक्ष की नेता थीं। जाहिर है, उस पद की गरिमा का उन्होंने तनिक खयाल नहीं किया। आज वे मुख्यमंत्री हैं। क्या उन्हें इस पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार रह गया है? काले धन और भ्रष्टाचार से निपटने के वादे पर सत्ता में आई भाजपा खुद इस कसौटी पर कहां खड़ी है!
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