जिम्मेदार पदों का निर्वाह कर रहे लोगों से स्वाभाविक ही यह उम्मीद की जाती है कि वे नियम-कायदों का ईमानदारी से पालन करेंगे। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि ऐसे लोग ही अपने पद के प्रभाव का इस्तेमाल कर नियमों को ताक पर रखने की कोशिश करते हैं। मंगलवार को केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री रामकृपाल यादव ने पटना के जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के भीतर गलत रास्ते से दाखिल होने की कोशिश की, वह अपने आप में इस बात का उदाहरण है कि हमारे जनप्रतिनिधि किस तरह नियमों को धता बताने में अपने रुतबे का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन वहां तैनात केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की एक महिला सिपाही की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उसने मंत्री को बाहर निकलने के रास्ते से हवाई अड्डे के भीतर दाखिल होने से रोक दिया। खबरों के मुताबिक निकास द्वार से ही अंदर जाने की कोशिश में जब रामकृपाल यादव ने अपना परिचय दिया और अपने साथ आए लोगों को रोके जाने के बाद अकेले जाने की बात कही, तब भी सिपाही ने इसकी इजाजत नहीं दी। विचित्र है कि मंत्री ने इस बात की जानकारी होते हुए भी ऐसा करने की कोशिश की कि हवाई अड्डा परिसर में निकास द्वार से प्रवेश करना नियमों का उल्लंघन है।
लेकिन सवाल है कि आखिर मंत्री किन वजहों से ऐसा कर रहे थे। दरअसल, नेताओं और जनप्रतिनिधियों के भीतर रुतबे का प्रदर्शन एक प्रवृत्ति बन चुकी है। ऐसे मामले अक्सर सामने आते हैं जिनमें किसी नेता, विधायक, सांसद या मंत्री ने अपने राजनीतिक रसूख को दूसरों पर रोब जमाने या मनमाने आचरण का जरिया बनाया और कानूनों तक का खयाल नहीं रखा। ऐसी ज्यादातर घटनाएं दबी रह जाती हैं, लेकिन अगर ये किन्हीं वजहों से सुर्खियों में आ जाती हैं, तो संबंधित नेता मासूम-सी सफाई दे देते हैं कि उन्हें नियम की जानकारी नहीं थी। पटना हवाई अड्डे पर हुई घटना के बाद रामकृपाल यादव ने भी सफाई दी कि मुझे नहीं पता था कि यह बाहर जाने का रास्ता है; मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था! उनकी यह सफाई विचित्र है। वे अक्सर हवाई जहाज से यात्रा करते और उसकी औपचारिकताओं से परिचित होंगे! इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा करे तो उसे सुरक्षा की दृष्टि से कितना संवेदनशील मामला माना जाएगा!
कुछ समय पहले केंद्रीय उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू ने बिना किसी हिचक के यह कहा कि वे अक्सर हवाई यात्रा के दौरान माचिस की डिब्बी लेकर चलते हैं और ऐसा करके कानून तोड़ते हैं; उनकी कोई जांच-पड़ताल नहीं होती। निश्चित रूप से उनका यह बयान हवाई अड्डे पर सुरक्षा बंदोबस्त को लेकर गंभीर सवाल उठाता है। अगर उनकी मंशा सुरक्षा इंतजामों में कोताही को उजागर करना थी तो उन्हें माचिस की डिब्बी हवाई जहाज में लेकर यात्रा करना क्यों जरूरी लगा? क्या उन्हें इसका अंदाजा नहीं है कि एक छोटी-सी चिंगारी हवाई जहाज में कितने बड़े हादसे की वजह बन सकती है? मुश्किल यही है कि लगभग हर समय सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर चिंतित हमारे नेता कई बार खुद नियमों की परवाह नहीं करते। अतिमहत्त्वपूर्ण का दर्जा हासिल कर गाड़ी पर लालबत्ती लगाने को हमारे कुछ नुमाइंदे किस तरह अपना रुतबा बढ़ाने के तौर पर दिखाते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। अगर कानून बनाने वाले खुद इनके पालन को लेकर गंभीर नहीं होंगे, तो फिर साधारण लोगों से इसकी कितनी उम्मीद की जा सकती है!
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