सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद के खिलाफ पिछले दिनों हुई सीबीआइ की कार्रवाई और अब गुजरात पुलिस के हलफनामे को लेकर मानवाधिकार संगठनों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए संघर्षरत अन्य समूहों के बीच स्वाभाविक ही तीखी प्रतिक्रिया हुई है। बरसों से दोनों को परेशान करने में गुजरात पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी है; उन्हें किसी न किसी तरह गिरफ्तार करने की जुगत में भी रही है। अगर तीस्ता और जावेद गिरफ्तारी से अब तक बचे हुए हैं, तो इसका श्रेय न्यायपालिका के हस्तक्षेप को जाता है। लेकिन केंद्र में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद से ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न का सिलसिला तेज हो गया है जिनकी सक्रियता सरकार को रास नहीं आती।

‘ग्रीनपीस’ की प्रिया पिल्लई के साथ हुआ सरकारी सलूक इसका उदाहरण है, जिस पर सरकार को दिल्ली उच्च न्यायालय की फटकार सुननी पड़ी थी। तीस्ता और जावेद बहुत पहले से भाजपा की आंख की किरकिरी रहे हैं, क्योंकि उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के बारे में तथ्य इकट्ठा कर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की, दंगा-पीड़ितों की पैरवी के इंतजाम किए और सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई कि मामलों की सुनवाई गुजरात से बाहर हो। कई आरोपी निचली अदालत से जमानत पर छूटे तो इसके खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील भी की। यह सब मोदी और भाजपा को कैसे रास आ सकता था?

गुजरात पुलिस ने सीतलवाड़ दंपति की अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में जो हलफनामा पेश किया है वह सरकारी तंत्र के दुरूपयोग की ही मिसाल है। इसका मकसद तीस्ता और जावेद की प्रतिष्ठा नष्ट करने के साथ ही उनकी गिरफ्तारी की गुंजाइश निकालना है। पुलिस का आरोप है कि इन दोनों ने सीजेपी यानी सिटिजंस फॉर जस्टिस ऐंड पीस और सबरंग न्यास को मिले धन की हेराफेरी की, उसे निजी, यहां तक विलासितापूर्ण खर्चों के लिए इस्तेमाल किया और साक्ष्य नष्ट किए।

मगर पुलिस की बताई हुई कहानी पर ढेरों सवाल उठते हैं। अगर दोनों संस्थाओं के धन का ऐसा बेजा इस्तेमाल हो रहा था, तो उनके बाकी न्यासी क्या कर रहे थे? सामाजिक सौहार्द और न्याय में यकीन रखने वाले मुंबई के ग्यारह प्रतिष्ठित नागरिकों ने अप्रैल 2002 में सीजेपी का गठन किया। इसके संस्थापक-अध्यक्ष मराठी के मशहूर नाटककार विजय तेंदुलकर थे और वे मई, 2008 तक, मृत्युपर्यंत इस पद पर रहे। सीजेपी का पहला काम सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रहे वीआर कृष्ण अय्यर के नेतृत्व में और अन्य कई पूर्व न्यायाधीशों को शामिल कर एक नागरिक न्यायाधिकरण का गठन था।

वर्ष 2003 से सक्रिय सबरंग न्यास की गतिविधियां भी धार्मिक असहिष्णुता और नफरत-भरे प्रचार का विरोध करने और सौहार्द को बढ़ावा देने पर केंद्रित रही हैं। गुजरात पुलिस ने सीजेपी और सबरंग को मिले धन के हर तरह के बेजा इस्तेमाल का आरोप लगाया है। जबकि दोनों संस्थाओं के साल-दर-साल आॅडिट होते रहे और यह काम आॅडिट की प्रतिष्ठित फर्मों से कराया गया। गुजरात उच्च न्यायालय में आय-व्यय के हजारों पन्नों के दस्तावेज जमा किए गए। गुजरात पुलिस की अपराध शाखा को भी इन दस्तावेजों से अवगत कराया गया। आॅडिट करने वाली फर्मों ने अपनी रिपोर्टों में अनियमितता का एक भी मामला नहीं पाया। फिर भी गुजरात पुलिस एक पर एक धांधली और गबन के किस्से गढ़े जा रही है तो यह उस पर पड़ रहे दबाव की ओर ही इशारा करता है।

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