जम्मू के ऊधमपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुए आतंकी हमले से एक बार फिर दहशतगर्दी रोकने को लेकर पाकिस्तान के इरादों पर से परदा उठा है। करीब दस दिन पहले पंजाब के गुरदासपुर में भी पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों ने हमला किया था। ऊधमपुर हमले में चूंकि एक आतंकी पकड़ा गया है, भारत सरकार को उसके जरिए काफी कुछ सूत्र हाथ लग पाएंगे। कई बातें उसने खुद बड़े सहज भाव से स्वीकार कर ली हैं। इसलिए माना जा रहा है कि पाकिस्तान को पहले की तरह तथ्यों को झुठलाने का मौका नहीं मिल पाएगा।
हालांकि उसने पुराने सुर में फौरन बयान जारी कर दिया है कि भारत सबूत पेश करे कि पकड़ा गया आतंकी पाकिस्तान का नागरिक है। मुंबई हमलों में पकड़े गए अजमल कसाब को लेकर भी लंबे समय तक उसकी यही दलील बनी रही कि वह पाकिस्तान का नागरिक नहीं है। उसमें मारे गए बाकी आतंकवादियों के शव लेने से भी उसने इनकार कर दिया था। उफा में हुए शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के बीच शांति बहाली की प्रक्रिया शुरू करने पर रजामंदी हुई थी, पर एक दिन बीता नहीं कि पाकिस्तान ने पलटी मार दी। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तो वह आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह सहयोग का वादा करता है, पर फिर वही पुराना राग अलापने लगता है। कश्मीर समस्या को तूल देने लगता है।
इस महीने दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बातचीत होनी है। उसमें भारत ऊधमपुर में पकड़े गए आतंकी से मिले तथ्यों को पाकिस्तान के सामने रखेगा। तीन दिन पहले मुंबई हमलों के मुख्य जांचकर्ता तारिक खोसा ने डॉन अखबार में लेख लिख कर खुलासा किया था कि हमले कराची से संचालित किए गए थे। मुंबई हमले से जुड़े तमाम पहलुओं पर उन्होंने विस्तार से लिखा और पाकिस्तान को सलाह दी कि वह सच्चाई का सामना करे। गुरदासपुर में हुए हमले के तार भी पाकिस्तान से जुड़े होने के तथ्य हैं। इन सबमें लश्कर-ए-तैयबा की भूमिका के प्रमाण हैं। भारत पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों के बारे में भी दस्तावेज सौंप चुका है, पर वह उन्हें अपुष्ट और बेबुनियाद करार देता रहा है। इसलिए ऊधमपुर में पकड़े गए आतंकी की मार्फत मिलने वाले सबूत भारत के लिए अहम हो सकते हैं।
पर इन सबसे सार्थक नतीजों की उम्मीद तभी बन सकती है, जब पाकिस्तान उन पर गंभीरता दिखाए। वह अक्सर कोई न कोई खलल पैदा कर शांति बहाली के लिए होने वाली बैठकों को बेनतीजा बनाने की कोशिश करता है। ऊधमपुर हमले पर उसके शुरुआती बयान से भी इसके संकेत मिल चुके हैं। दरअसल, पाकिस्तान के हुक्मरान में आतंकवाद रोकने को लेकर राजनीतिक इच्छाशक्ति की निहायत कमी है। वरना इसकी कोई वजह नहीं हो सकती कि लश्कर-ए-तैयबा के खिलाफ ढेर सारे सबूत होने के बावजूद पाकिस्तान सरकार उस पर प्रतिबंध नहीं लगा पा रही है। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को भारत के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करना बंद नहीं करता, दहशत का सिलसिला बंद नहीं हो सकता।
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