केरल में पिछले तीन दिन की मूसलाधार बारिश और इससे हुए हादसे राज्य के लिए एक गंभीर आपदा साबित हुए हैं। कुदरत के इस कहर ने अब तक चालीस से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। ज्यादातर मौतें जमीन धंसने और मकानों के गिरने से हुर्इं। राज्य के कई जिले बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। कन्नूर, इडुक्की, कोझिकोड, वायनाड और मलप्पुरम में सबसे ज्यादा तबाही हुई है। इडुक्की और मलप्पुरम में जमीन धंसने की घटनाएं सबसे ज्यादा हुर्इं, जहां सत्रह लोग मारे गए। दस हजार से ज्यादा लोगों को बाढ़ग्रस्त इलाकों से निकाल कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है। बचाव और राहत की कमान एनडीआरएफ और सेना ने संभाली हुई है। खुद मुख्यमंत्री ने हालात को काफी विकट बताया है। राज्य में रेल और सड़क यातायात ठप पड़ा है। जगह-जगह सड़कें टूट गई हैं और रेल पटरियों को भारी नुकसान पहुंचा है। भारी बारिश के कारण कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर विमानों की आवाजाही बंद करनी पड़ी, क्योंकि पेरियार नदी में जलस्तर बढ़ने के कारण हवाई अड्डा क्षेत्र में पानी भरने का खतरा पैदा हो गया है। केरल में पिछले कई सालों में तबाही का ऐसा मंजर देखने को नहीं मिला। कहा जा रहा है कि पिछले पचास साल के दौरान तो न ऐसा पानी पड़ा और न ही ऐसी बाढ़ और तबाही देखी गई थी।

यों केरल में मानसून के दस्तक देने के साथ ही भारी बारिश का दौर शुरू हो जाता है, लेकिन स्थिति इतनी जानलेवा नहीं बनती। केरल के बारिश-बाढ़ के ऐसे गंभीर हालात से यह सवाल उठता ही है कि इस बार स्थिति क्यों ज्यादा बिगड़ी! क्या मौसम विभाग भारी बारिश के बारे में सटीक पूर्वानुमान नहीं लगा पाया? अगर इसके स्तर की चेतावनी पहले सामने आई होती तो शायद लोगों को पहले ही सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने में मदद मिल जाती। मौसम विभाग ने दक्षिण-पश्चिम मानसून की अत्यधिक सक्रियता को ज्यादा बारिश का कारण बताया है। चौबीस घंटे में तीन सौ सैंतीस फीसद ज्यादा बारिश हो गई। औसत बारिश 13.9 मिलीमीटर होनी थी, जबकि इस बार 66.2 मिलीमीटर हो गई। इससे कई नदियों में जो उफान आया, उसने भयावह रूप धारण कर लिया। इस वजह से राज्य के अठहत्तर में से चौबीस बांधों को खोलना पड़ा। इन सभी बांधों में जलस्तर सीमा से ऊपर निकल चुका था। पिछले छब्बीस साल में पहली बार ऐसा हुआ है जब एशिया के सबसे बड़े चेरुथोनी बांध का गेट तक खोलना पड़ गया।

केरल के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती लोगों को इस संकट से निकालने की है। राहत और बचाव कार्य इस तरह से चलने चाहिए कि लोग जल्दी सामान्य जिंदगी शुरू कर सकें। जब तक राहत शिविरों में रह रहे लोग अपने घरों को न लौट जाएं, तब तक उनकी देखभाल की जिम्मेदारी सरकार या प्रशासन की होनी चाहिए। इसी में कोताही बरती जाती है, जिससे पीड़ितों को गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस तरह की आपदाओं के बाद सरकारों के लिए राहत कार्य बड़ी चुनौती बन जाते हैं। जिन लोगों के अपने घर ढह गए हैं या जिनके परिजन इन हादसों में मारे गए हैं, उनका फिर से सहज होकर नई जिंदगी शुरू कर पाना मुश्किल होता है। सरकारें जल्दी ऐसी जिम्मेदारियों से पिंड छुड़ाने के चक्कर में रहती हैं, राहत के काम भ्रष्टाचार का शिकार हो जाते हैं और पीड़ित ठगा-सा महसूस करने लगते हैं। इस लिहाज से देखें तो केरल की आपदा और उसके बाद उपजे हालात राज्य सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी हैं।