यह आम चुनाव पिछले आम चुनावों से कई मायनों में अलग होगा। इस बार नब्बे करोड़ मतदाता अपने जनप्रतिनिधि चुनेंगे, जबकि पिछली बार इक्यासी करोड़ मतदाता थे। यह पहला आम चुनाव होगा जब इक्कीसवीं सदी में पैदा हुए बच्चों को पहली बार वोट डालने का अवसर मिलेगा। इन नए मतदाताओं की संख्या डेढ़ करोड़ के करीब है। राजनीतिक दलों का भविष्य तय करने में इनका योगदान मामूली नहीं माना जाना चाहिए। यह वह वर्ग है जो सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करता है। इसलिए चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि कोई भी चुनावी विज्ञापन या सामग्री सोशल मीडिया पर डालने से पहले उन्हें चुनाव आयोग से इजाजत लेनी होगी। इससे दुष्प्रचार पर लगाम लगने में काफी हद तक मदद मिलेगी।
चुनाव साफ-सुथरे हों और चुनाव प्रक्रिया पर किसी को कोई संदेह नहीं हो, इस पर चुनाव आयोग को खरा उतरना है। मतदान के लिए इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की विश्वसनीयता को लेकर समय-समय संदेह व्यक्त किए जाते रहे हैं। इसलिए इस बार सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट मशीनें होंगी, ताकि मतदाता को यह पता चल सके कि उसने जिसे वोट दिया है वह उसी को गया या नहीं। यही अब तक विवाद का सबसे बड़ा कारण बना हुआ था और इसी वजह से ईवीएम को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इस बार करीब डेढ़ महीने तक चलने और सात चरणों में होने वाले मतदान के दौरान सारे मतदान केंद्रों पर सीसीटीवी लगे होंगे और पूरी चुनाव प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी होगी। इतने पुख्ता तकनीकी बंदोबस्तों के बावजूद ये शिकायतें अक्सर आती हैं कि कहीं ईवीएम खराब तो कहीं वीवीपैट खराब। मामला तब गंभीर हो जाता है जब मौके पर इन शिकायतों का निराकरण नहीं हो पाता और मतदाताओं को बिना वोट डाले लौटना पड़ता है। चुनावों में धन-बल का इस्तेमाल आज भी गंभीर समस्या बना हुआ है। मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने और हरसंभव हथकंडे अपनाने की जो घातक प्रवृत्ति हमारे राजनीतिक दलों में है, उससे निपटना एक बड़ी चुनौती है। हालांकि भारत का मतदाता पहले के मुकाबले आज काफी जागरूक है। इसलिए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि आम चुनाव में मतदाता अपने विवेक से जनप्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे।