किसी भी त्योहार से लेकर शादी समारोहों तक में व्यक्ति का खुश होना और खुशी बांटना स्वाभाविक है। एक तरह से यही बात और व्यवहार त्योहार या ऐसे समारोहों की शोभा भी होती है। लेकिन मुश्किल तब खड़ी होती है जब ऐसे हर त्योहारों या समारोहों को लोग अपनी शान प्रदर्शित करने या दिखावा करने का मौका मान लेते हैं। कई बार तो इसमें शामिल लोग इस कदर बेलगाम हो जाते हैं कि उन्हें इस बात की भी फिक्र नहीं रहती कि उनकी गतिविधियों से कानून का उल्लंघन हो रहा है या फिर किसे तकलीफ पहुंच रही है। शादी के मौके पर आतिशबाजी और गोलीबारी का शौक इसी तरह की हरकत है, जो पारंपरिक समझ के मुताबिक भले ही कुछ लोगों को देखने में अच्छा लगे, लेकिन अपने असर में वह कई तरह की विकृतियों का वाहक है। मसलन, आतिशबाजी से जहां आसपास मौजूद लोगों को जोखिम हो सकता है, वहीं उससे प्रदूषण की समस्या और ज्यादा गहराती है। आतिशबाजी के असर की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दिवाली जैसे व्यापक तौर पर मनाए जाने वाले त्योहार के मौके पर भी पटाखे जलाना प्रतिबंधित इसलिए किया गया कि वायु और ध्वनि प्रदूषण का यह एक बड़ा कारण है।

विडंबना यह है कि कानूनी तौर पर प्रतिबंधित होने के बावजूद कुछ लोग शादी-ब्याह या किसी अन्य मौके पर आतिशबाजी करने से नहीं चूकते। ऐसा शायद इसलिए भी होता है कि ऐसे मामलों में शिकायत के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती, ताकि अन्य लोगों को सबक मिले। लेकिन मंगलवार को आई खबर के मुताबिक नोएडा में प्रशासन की ओर से साफ शब्दों में यह ताकीद की गई है कि प्रतिबंध के बावजूद अगर शादी समारोहों में पटाखे जलाए गए तो दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी और नियमों का उल्लंघन करने वालों को पांच लाख रुपए तक का जुर्माना देना पड़ सकता है या फिर एक साल की कैद हो सकती है। हालांकि शादी-ब्याह में जश्न मनाने के दौरान बेलगाम होकर आतिशबाजी करने को लेकर पहले से ही कानूनी व्यवस्था है। लेकिन ऐसा बहुत कम देखा जाता है कि लोग अपनी ओर से नियम-कायदों का खयाल रख कर जश्न मनाने को लेकर संयमित हो पाते हैं। चलती सड़क का काफी हिस्सा घेर कर बारात निकालने, तेज आवाज में लाउडस्पीकर या डीजे बजाने या बेलगाम तरीके से लेकर आतिशबाजी करना तो आम है, कई बार खुशी जाहिर करने के नाम पर गोलीबारी भी की जाती है।

सही है कि शादी समारोह या कोई भी त्योहार उसे मनाने वाले से लेकर आसपास मौजूद लोगों के लिए खुश होने का मौका होना चाहिए। शादी-ब्याह या त्योहार के मौके पर खुशी जाहिर करने या साझा करने के तमाम सौम्य और सभ्य तरीके हैं। ऐसे शालीन तरीकों से परंपरा में मानवीयता के तत्त्व घुलते हैं और उसकी प्रतिष्ठा बढ़ सकती है। लेकिन इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि खुशी जाहिर करना दरअसल बेलगाम दिखावे की एक तरकीब भर हो और उससे न केवल आबोहवा को नुकसान पहुंचता हो, बल्कि लोगों की जान पर भी जोखिम खड़ा हो जाता हो। ऐसी घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं जिनमें शादी की बरात में किसी ने शान बघारने के लिए बंदूक से गोली चलाई और धोखे से वह आसपास किसी को लग गई और फिर उसकी जान चली गई। यानी शादी के मौके पर गोलीबारी दरअसल खुशी जताने का एक ऐसा मौका है, जो व्यक्ति को अपराधी बना दे सकता है और जिससे किसी की जान जा सकती है। सवाल है कि इस तौर-तरीके या पारंपरिक शान बघारने का समर्थन किस आधार पर किया जाना चाहिए?