आदमी में कल्पनाशीलता और जुनून हो तो उसका किया अलक्षित नहीं जाता। मिसाल बन जाता है। चंडीगढ़ में नेकचंद द्वारा परिकल्पित-रचित पत्थरों का बाग यानी रॉक गार्डन इसका उदाहरण है। नेकचंद प्रशिक्षित कलाकार नहीं थे। लोक निर्माण विभाग में सड़कों की गुणवत्ता जांचने वाले निरीक्षक के तौर पर काम करते थे। मगर कचरे और मलबे के रूप में बिखरी वस्तुओं में उन्हें कला की संभावना नजर आई। उन्हें बेकार समझ कर फेंक दी गई चीजों को सुंदर प्रतिरूपों में ढालने का जुनून सवार हुआ। जगह-जगह से टूटी हुई चूड़ियों, चीनी मिट््टी से बने बर्तनों के टुकड़े, घरों में लगने वाली टाइलों, बिजली उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के अचालक पुर्जों आदि के टुकड़े बटोरना शुरू किया। सीमेंट और मलबे से उठाई उन वस्तुओं के इस्तेमाल से लोककला की अनगढ़ शैली में मानवाकृतियों, पशु-पक्षी, लोक-प्रतीकों आदि के शिल्प रचने शुरू कर दिए। अपने इस काम के लिए जो जगह उन्होंने चुनी वह चंडीगढ़ विकास प्राधिकरण की संरक्षित वन-भूमि थी। वहां किसी भी तरह का निर्माण-कार्य नहीं किया जा सकता था।
वे उस जंगल के भीतर चोरी-छिपे आकृतियां गढ़ते रहे। करीब अठारह साल तक उन्होंने अपने काम को लोगों की नजरों से छिपाए रखा। यह खतरा था कि जब भी उनके काम पर प्राधिकरण की नजर पड़ेगी, उसे नष्ट किया जा सकता है। उन्हें सजा भी हो सकती थी। पर जब लोगों ने उनके काम को देखा तो खूब सराहा। सरकारी समर्थन भी मिला। उनका परिकल्पित पत्थरों का बाग आम लोगों के लिए खोल दिया गया। नेकचंद को बाकायदा सरकारी वेतन पर उसका संरक्षक नियुक्त किया गया। इस काम को आगे बढ़ाने के लिए पचास कामगारों को भी वहां स्थायी रूप से रखा गया। इस तरह इस बाग का वर्तमान परिसर तीन चरणों में बन कर तैयार हुआ।
नेकचंद की कृतियों का महत्त्व उच्छिष्ट को उत्कृष्ट का उपादान बनाने में है। विभिन्न कारखानों, भवन निर्माण से जुड़ी कंपनियों, रिहाइशी कॉलोनियों आदि से रोज बहुत सारा अगलनीय कचरा निकलता है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है। इसे ठिकाने लगाना बड़ी चुनौती है। नेकचंद ने उस कचरे का रचनात्मक उपयोग करके न सिर्फ कला के क्षेत्र में एक नया आयाम खोला, बल्कि पर्यावरणीय क्षति को रोकने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कारखानों, कचरे के ठिकानों आदि से चूड़ियों, टूटे हुए कांच के बर्तनों, सजावटी वस्तुओं के टुकड़े इकट्ठा किए और कोई विषय-वस्तु कल्पित कर समान प्रकृति की वस्तुओं से आकृतियां गढ़ीं। मसलन, चूड़ियों के टुकड़ों से ग्रामीण स्त्री-पुरुष, चीनी मिट्टी के बर्तनों से पशु-पक्षी वगैरह। इस तरह उन्होंने बेकार पड़ी वस्तुओं से संगीत मंडली, वादक दल, पनिहारिनें, घोड़ों, हाथियों, हंसों, गाय-बैलों के समूह आदि रचे। अनगढ़ पत्थरों से उनके आधार और दीवारों की रचना की। उनके इस काम को दुनिया भर में सराहा गया, बहुत-से कलाकारों ने प्रेरित होकर इसे विधा के रूप में अपनाया।
नेकचंद की सीमेंट और अगलनीय कचरे से निर्मित कृतियां दुनिया के कई प्रतिष्ठित संग्रहालयों में रखी गर्इं, सार्वजनिक स्थलों पर लगाई गर्इं। चंडीगढ़ के अलावा कहीं और उनकी सबसे अधिक कृतियां प्रदर्शित हैं तो अमेरिका में। नेकचंद प्रतिष्ठान गठित करके उन्होंने दुनिया भर में अगलनीय कचरे से सौंदर्य रचने का अभियान चलाया। पत्थरों में जान फूंकी। भारतीय लोककला शैली को व्यापक मंच प्रदान किया। अमेरिका, फ्रांस आदि देशों में उन्होंने अपने सृजन का प्रसार किया। इस तरह जो काम उन्होंने शौकिया तौर पर शुरू किया था, उसने अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित की। इसके लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। अब वे नहीं हैं, पर पत्थरों में उनकी स्मृति सदा गूंजती रहेगी।
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