सड़क हादसों में लगातार हो रहे इजाफे को लेकर प्रधानमंत्री की चिंता स्वाभाविक है। स्थिति यह है कि हमारे देश में प्राकृतिक आपदाओं के चलते उतनी मौतें नहीं होतीं, जितनी सड़क दुर्घटनाओं में हो जाती हैं। इन पर काबू पाने के मकसद से कई बार यातायात संबंधी कानूनों में बदलाव किए गए, जुर्माने और दंड के प्रावधान कड़े बनाए गए। पर इस सबका कोई अपेक्षित नतीजा नहीं दिखता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ के अपने ताजा संबोधन को सड़क पर सुरक्षित सफर पर केंद्रित करते हुए जल्दी ही सड़क सुरक्षा संबंधी विधेयक लाने का वादा किया है। उन्होंने सड़क हादसे में घायल होने वाले लोगों की मुफ्त चिकित्सा का भरोसा दिलाया है। उनकी इन घोषणाओं से सड़कों पर मंडराते खतरे कम होने और आपातकालीन सहायता के प्रबंध की उम्मीद जगी है।

अक्सर देखा जाता है कि चालक या गाड़ियों में सवार लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं, राह चलते लोग उन्हें अस्पताल पहुंचाने की पहल इसलिए नहीं करते कि वहां इलाज शुरू करने से पहले पैसे जमा करने को कहा जाता है। अस्पताल किसी अपरिचित व्यक्ति का इलाज करने से कतराते हैं, यह सोच कर कि इलाज का खर्च कौन उठाएगा। इस तरह समय पर इलाज न मिल पाने के कारण बहुत सारे लोग दम तोड़ देते हैं। प्रधानमंत्री ने एलान किया है कि दुर्घटना के बाद घायल व्यक्ति के पचास घंटे तक हुए इलाज का खर्च सरकार वहन करेगी। फिलहाल यह योजना कुछ चुनिंदा राजमार्गों पर लागू होगी, फिर इसका पूरे देश में विस्तार किया जाएगा। इस योजना से निस्संदेह बहुत सारे लोगों की जान बचाने में मदद मिलेगी।

अधिकतर सड़क हादसे तेज रफ्तार, नशे की हालत में और यातायात नियमों की अनदेखी करते हुए गाड़ी चलाने की वजह से होते हैं। दुपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट न पहनना या फिर घटिया किस्म का हेलमेट पहनना भी सिर में चोट लगने से होने वाली मौतों के पीछे एक बड़ा कारण है। यातायात पुलिस इन तमाम पहलुओं से वाकिफ है, पर वह सड़क दुर्घटनाओं को नहीं रोेक पा रही। इसकी कुछ वजहें साफ हैं। एक तो जिस गति से सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ रहा है, उस अनुपात में उन पर नजर रखने वाले यातायात पुलिसकर्मियों की तैनाती नहीं हो पा रही। फिर यातायात पुलिस को अत्याधुनिक संचार सुविधाओं के मुताबिक प्रशिक्षित नहीं किया जा रहा। इसके अलावा उसे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जवाबदेह बनाना भी मुश्किल बना हुआ है। चालान काटने के नाम पर वह अक्सर अपनी जेब गरम करती नजर आती है।

सुगम यातायात और तेज रफ्तार गाड़ियों के लिए फर्राटा सड़कों और उपरिगामी पुलों का जाल तेजी से फैला है, मगर सड़क सुरक्षा पर माकूल ध्यान नहीं दिया जा रहा। भीड़भाड़ वाली सड़कों पर जगह-जगह क्लोज सर्किट कैमरे लगाने का प्रस्ताव था, पर इस दिशा में बहुत कम प्रगति हुई है। गाड़ी चलाने का लाइसेंस जारी करते समय इस बात की जांच करना जरूरी नहीं समझा जाता कि चालक गाड़ी चलाने में दक्ष है या नहीं। ज्यादातर लाइसेंस बिचौलियों की मदद से बनवा लिए जाते हैं। राजमार्गों पर भारी वाहन चलाने वालों में बहुत सारे चालक इसी तरह लाइसेंस प्राप्त किए होते हैं। फिर, तमाम कवायद के बावजूद नशा करके गाड़ी चलाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चुनौती बना हुआ है। सड़क पर सुरक्षित सफर की खातिर इन तमाम पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है।

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