जनप्रतिनिधियों के अशालीन व्यवहार की खबरें अक्सर आती रहती हैं। कभी वे सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों से दुर्व्यवहार करते हैं, तो कभी आम लोगों पर धौंस जमाते देखे जाते हैं। आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इसी कुचक्र से राजनीति को मुक्त कराने का वादा किया था। पर दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद जिस तरह ‘आप’ के करीब दो दर्जन विधायकों के फर्जीवाड़े, सरकारी कर्मचारियों के कामकाज में बाधा डालने और आपराधिक मामलों में शामिल रहने की बात सामने आई, उसने लोगों को निराश किया है। मंगलवार को विधायक सुरेंद्र सिंह के जैसे बर्ताव की खबर आई, उससे शुचिता की राजनीति करने वाली ‘आप’ की प्रतिबद्धता पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा है।

गौरतलब है कि एनडीएमसी यानी नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के एक दस्ते ने अतिक्रमण हटाने के क्रम में एक सब्जी विक्रेता को रोका तो वहां से गुजर रहे ‘आप’ विधायक ने उन कर्मचारियों के काम में बाधा डाली और उनसे मारपीट की। विधायक पर यह भी आरोप है कि उन्होंने कर्मचारियों को जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर अपमानित किया। सवाल है कि अगर विधायक को किसी कर्मचारी का व्यवहार गलत लगा, तो उन्होंने उसके खिलाफ कानूनी रास्ता अख्तियार करना जरूरी क्यों नहीं समझा! फिर नगरपालिका कर्मचारियों से बहस करते हुए उन्होंने आखिर किन वजहों से कथित तौर पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया? हालांकि विवाद के तूल पकड़ने के बाद उन्होंने इन आरोपों से इनकार किया, लेकिन अगर ऐसा कुछ नहीं हुआ था तो नगरपालिका के कर्मचारियों को मारपीट की शिकायत सहित अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कराने की नौबत क्यों आई?

दरअसल, किसी नेता के ऐसे व्यवहार की जड़ में सामंती प्रवृत्ति बैठी होती है। ऐसे लोग जनता को उसकी तकलीफें दूर करने का भरोसा तो देते हैं, पर राजनीतिक ताकत पाते ही अपने व्यवहार पर काबू नहीं रख पाते। पिछले दो सालों के दौरान आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल इसी छवि से राजनीति को आजाद करने और एक नया चेहरा देने का दावा करते रहे। पर जिस तरह एक के बाद एक ‘आप’ विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं या पहले के मुकदमे सामने आने लगे हैं, उससे यही लगता है कि राजनीतिक शुचिता की कसौटी पर यह दूसरी पार्टियों से अलग नहीं है।

यों पार्टी सफाई दे सकती है कि विरोधी दलों के लोग राजनीति से प्रेरित होकर उसके विधायकों को निशाना बना रहे हैं। पर हकीकत यह भी है कि ‘आप’ विधायकों के खिलाफ जो मामले दर्ज हुए हैं, उनमें से ज्यादातर सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को उनके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के आरोपों के तहत हैं। अगर ‘आप’ के विधायक खुद नियम-कायदों की परवाह नहीं करते, तो उसकी सरकार कानून का शासन सुनिश्चित करने का वादा कैसे पूरा कर सकती है।

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