गंगा को प्रदूषण-मुक्त बनाने को लेकर मोदी सरकार ने कुछ सख्त कदम उठाने का इरादा जाहिर किया है। इसी के मद््देनजर जल संसाधन मंत्रालय एक ऐसा कानून बनाना चाहता है, जिसके तहत गंगा में गंदगी बहाने वालों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जा सकें। इस बाबत शहरी विकास मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, विधि मंत्रालय आदि से संबंधित पहलुओं पर विचार-विमर्श के बाद कानून का अंतिम प्रारूप तैयार किया जाएगा। मौजूदा राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण को एक आयोग के रूप में बदलने का भी प्रस्ताव है, क्योंकि प्राधिकरण के पास दोषियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। प्राधिकरण फिलहाल उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों के साथ तालमेल करके गंगा पुनर्जीवन संबंधी योजनाओं पर नजर रखता है। उम्मीद की जा रही है कि प्रस्तावित कानून बन जाने के बाद वह बड़े प्रतिरोधक का काम करेगा।

हालांकि कानून बनाने से पहले केंद्र सरकार को गंगा सफाई से संबंधित कई पहलुओं पर काफी हद तक बुनियादी तैयारी करने की जरूरत है। मोदी सरकार का दावा है कि कार्यकाल पूरा होने से पहले वह ऐसी व्यवस्था कर लेगी, जिससे बगैर शोधन के एक बूंद पानी भी गंगा में नहीं गिरने पाएगा। इसके लिए गंगा के किनारे बसे सभी एक सौ अठारह शहरों में सीवर शोधन संयंत्र और औद्योगिक क्षेत्रों में केंद्रीय जल शोधन संयंत्र लगा लिए जाएंगे। गंगा किनारे की सभी एक हजार छह सौ सत्तावन ग्राम पंचायतों में पूर्ण स्वच्छता के इंतजाम किए जाएंगे। करीब ढाई हजार किलोमीटर गंगा के किनारों पर औषधीय पौधे उगाने की भी योजना है। कहीं किसी औद्योगिक इकाई या दूसरे किसी माध्यम से गंगा में गंदगी न पहुंचने पाए, इस पर नजर रखने के लिए करीब चार सौ सुरक्षाकर्मियों और नगर निकायों की मदद से दूसरे कार्यदलों को तैनात किया जाएगा। यानी पिछले तीस सालों में अरबों रुपए बहाए जाने के बावजूद गंगा को प्रदूषण-मुक्त बनाने को लेकर जो शिथिलता बनी हुई थी, वह शायद अब दूर हो सके।

यह ठीक है कि प्रस्तावित कानून के जरिए मनमानी करने वाली औद्योगिक इकाइयों और जल-मल निस्तारण की व्यवस्था संभालने वाले महकमों पर नकेल कसने में आसानी हो सकेगी, मगर इतने भर से मकसद पूरा होना शायद संभव न हो। शहरों से निकलने वाले गंदे पानी के शोधन के लिए पर्याप्त संयंत्र लगाना और उनकी समुचित देखभाल करना बड़ी चुनौती है। अभी केवल पचास शहरों में शोधन संयंत्र लगाने की परियोजना पर काम चल रहा है, अड़सठ शहर अब भी इससे वंचित हैं। वहां यह काम कब तक पूरा हो पाएगा, फिलहाल इसकी कोई योजना नहीं दिखती। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गंदे और रसायनयुक्त पानी को शोधन के बगैर बहाने के खिलाफ कड़े कानून पहले से हैं। पर्यावरण विभाग को इन इकाइयों को जब-तब कड़ी चेतावनी भी देते देखा गया है, मगर सख्त दंडात्मक कार्रवाई न हो पाने के कारण वे मनमानी से बाज नहीं आतीं। इसके पीछे राजनीतिक रसूख वालों के प्रति नरमी बड़ी वजह है। नदी में गंदगी बहाना अपराध है, पर प्रस्तावित कानून का दायरा गंगा तक सीमित क्यों रहे? क्यों न इसे व्यापक बनाया जाए। बहुत सारी नदियां प्रदूषण के अलावा अतिक्रमण का भी शिकार हैं। इसके खिलाफ भी मुहिम चलनी चाहिए।

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta