पिछले हफ्ते अपने बंगाल दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा की तीन योजनाओं की घोषणा की। इस साल के बजट में ये योजनाएं शुरू करने का इरादा सरकार जता चुकी थी। हमारे देश में, जैसा कि प्रधानमंत्री ने भी कहा है, नब्बे फीसद लोगों को न किसी तरह की बीमा की सुविधा हासिल है न पेंशन की। इसलिए मामूली अंशदान पर उन्हें ऐसी सहूलियत मुहैया कराना निश्चय ही एक बहुत सकारात्मक कदम है। ये योजनाएं ऐसे समय शुरू की गई हैं जब सरकार पर कॉरपोरट जगत की ज्यादा सुध लेने और आम लोगों की उपेक्षा करने या उन्हें उनके हाल पर छोड़ देने के आरोप विपक्ष ने लगाए हैं। लिहाजा, ताजा पहल सरकार के लिए राजनीतिक नजरिए से भी अहम है।
कोलकाता में इन योजनाओं की घोषणा के मौके पर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद थीं। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना किसी कारण से असामयिक मृत्यु होने या दुर्घटना के चलते अपंग होने की सूरत में बीमा की सुविधा देगी, वहीं अटल पेंशन योजना का मकसद गरीबों को बुढ़ापे में आर्थिक सहारा देना है। दोनों बीमा योजनाओं में से प्रत्येक के तहत दो लाख रुपए का बीमा होगा। दुर्घटना बीमा के लिए बारह रुपए और जीवन बीमा के लिए तीन सौ तीस रुपए का सालाना प्रीमियम चुकाना पड़ेगा। अटल पेंशन योजना के तहत कई विकल्प होंगे, ताकि अंशदान की क्षमता के हिसाब से अलग-अलग विकल्प चुने जा सकें।
बीमा योजनाओं के प्रीमियम की राशि इतनी कम रखी गई है कि अधिक से अधिक लोग इसे अपना सकें और सबको बीमा-सुविधा के दायरे में लाने का ध्येय पूरा हो सके। लेकिन फिलहाल बहुत आकर्षक दिख रही ये योजनाएं क्या दीर्घावधि में कारगर हो पाएंगी? अगर बाद में प्रीमियम बढ़ाया जाता है तो नवीकरण को लेकर समस्या आ सकती है। इसके अलावा, दावों के निपटारे और पॉलिसी के बाद की सेवाओं के संचालन को लेकर भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
बीमा कंपनियों की दिलचस्पी इस बात में होती है कि उन्हें कम से कम दावे मंजूर करने पड़ें। तमाम स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की बाबत लोगों का आम अनुभव यही है। जहां प्रीमियम की राशि बहुत कम होगी, वहां कंपनियों की यह प्रवृत्ति और भी कठोर रूप में सामने आ सकती है। इससे पहले, सामाजिक क्षेत्र की खूब जोर-शोर से एक योजना जन धन खातों की शुरू की गई थी। इसके तहत छब्बीस जनवरी की समय-सीमा से दो माह पहले ही साढ़े सात करोड़ खाते खोलने का लक्ष्य पा लिया गया। पर इनमें शून्य जमा वाले खातों की संख्या बहुत ज्यादा है।
नई योजनाओं का कैसा अनुभव रहेगा, यह बाद में पता चलेगा। पर सवाल यह है कि प्रधानमंत्री अगर गरीबों के लिए चिंतित हैं तो सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के मद में कटौती क्यों की गई? यूपीए सरकार के दस साल के दौरान कभी योजनागत व्यय में कटौती नहीं की गई, तब भी नहीं, जब देश मंदी का सामना कर रहा था। मगर मोदी सरकार ने वित्तीय परेशानियों की दलील देते हुए इस साल के बजट में योजनागत व्यय में बीस फीसद की कमी कर दी, जिसका सबसे बुरा असर शिक्षा, कुपोषण निवारण और स्त्री सशक्तीकरण वाले कार्यक्रमों पर पड़ा है।
खुद महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी इस पर नाराजगी जता चुकी हैं। मनरेगा का भी आबंटन घटा है। क्यों न घटे, जब प्रधानमंत्री उसे यूपीए सरकार की विफलता का स्मारक करार दे चुके हों। पर उन्हीं की पार्टी के एक नेता और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मनरेगा को एक बहुत उपयोगी योजना मानते हैं। सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों की बाबत यह विसंगित क्यों है!
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta