हमारे समाज में धार्मिक आधार पर भेदभाव के मामले सामने आते रहे हैं। पर किसी को सिर्फ दूसरे मजहब का होने के कारण नौकरी पर न रखने का औपचारिक जवाब भेजने की घटना शायद ही कभी सामने आई हो। हमारा संविधान किसी भी नागरिक के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव की इजाजत नहीं देता। मुंबई में एक युवक को उसके मुसलमान होने की वजह से नौकरी के लायक नहीं समझा जाना संबंधित कंपनी के मालिक का दुराग्रह ही कहा जाएगा। साथ ही यह आवेदक के साथ कानूनन अन्याय भी है। बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातक उन्नीस साल के जीशान अली खान ने हरेकृष्णा एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन भेजा था। महज पंद्रह मिनट के भीतर खान को कंपनी ने यह जवाब इ-मेल से भेज दिया कि ‘हम केवल गैर-मुसलिम को ही नौकरी पर रखते हैं’। इससे युवक का आहत होना स्वाभाविक था। जब उसने सोशल मीडिया पर अपने इस दुख को साझा किया तब मामले ने तूल पकड़ लिया।
विवाद गहराने पर मुंबई पुलिस ने मामला दर्ज किया और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने कंपनी से स्पष्टीकरण मांगा। लेकिन कंपनी ने जो सफाई पेश की है वह खुद को बचाने की बेतुकी कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है। कंपनी ने आपत्तिजनक जवाब भेजे जाने के लिए अपने एक प्रशिक्षु को जिम्मेदार ठहराया है। यह कैसे मुमकिन है कि नौकरी के आवेदन पर निर्णय कंपनी का एक प्रशिक्षु अपनी मर्जी से लिख भेजे? गौरतलब है कि लगभग पांच साल पहले इसी कंपनी के मालिक सावजी ढोलकिया को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते निर्यात से जुड़े पुरस्कार से सम्मानित किया था।
हालांकि हिंदू पहचान वाले लोगों के रिहाइशी इलाकों में किसी मुसलिम परिवार को किराए पर घर नहीं दिए जाने के मामले सामने आते रहे हैं। शबाना आजमी जैसी शख्सियत ने इस मसले पर ध्यान खींचा तो इस तरह का भेदभाव कुछ समय के लिए चर्चा का विषय बना था। लेकिन असहिष्णुता को जिस तरह कुछ संगठन बढ़ावा देने में लगे हैं उससे समस्या सिर्फ किराए पर घर पाने तक सीमित नहीं रह गई है। कई जगह हिंदू बस्ती में रहने वाले मुसलिम व्यक्ति को अपना घर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। अध्ययन बताते हैं कि सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करने और दंगे भड़काने के पीछे कई बार जमीन-जायदाद से जुड़े कारण भी होते हैं। करीब डेढ़ महीने पहले गुजरात के भावनगर में विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक हिंदू बहुल इलाके के लोगों से अपील की थी कि वहां मुसलिम परिवारों को न घुसने दिया जाए।
इसके बाद वहां के एक मुसलिम कारोबारी को अपना बंगला बेच कर चले जाने पर मजबूर कर दिया गया। दोनों समुदाय आपसी सौहार्द से रहते आए हैं। दोनों के बीच एक-दूसरे की मदद के हजारों किस्से हैं। इसकी एक ताजा मिसाल बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की है, जहां प्रस्तावित ‘रामायण मंदिर’ के लिए मुसलिम समुदाय के कई परिवारों ने स्वेच्छा से तीस एकड़ से ज्यादा जमीन दान-स्वरूप दी है। यह इस बात का सबूत है कि दोनों समुदाय के लोग किस तरह रहना चाहते हैं। लेकिन इसके बरक्स विद्वेष फैलाने की कोशिशें भी चलती रही हैं। इनसे निपटने के लिए कानून के अलावा सामाजिक स्तर पर भी प्रयास करने होंगे।
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