मैगी नूडल्स में तय मानकों से अधिक सीसा की मात्रा पाए जाने के बाद अब सभी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में मुस्तैदी दिखाते हुए एफएसएसएआइ यानी भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने सभी राज्यों के खाद्य सुरक्षा आयुक्तों को निर्देश दिया है कि वे पंजीकृत और अपंजीकृत सभी तरह के डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के नमूने लेकर उनकी गुणवत्ता की जांच करें। हालांकि डिब्बाबंद आहार से सेहत पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को लेकर पहले कई अध्ययन आए और इनकी गुणवत्ता पर कड़ाई से नजर रखने की जरूरत रेखांकित की गई, पर तब इस मामले में कोई संजीदगी नहीं दिखी थी। रसोईघर में रोज तैयार होने वाले भोजन पर धीरे-धीरे बाजार का कब्जा होता गया है।

तरह-तरह की नमकीन-मिठाइयों और दुग्ध उत्पाद के अलावा अचार, चटनी, मुरब्बे, फलों के रस, शर्बत, कटी-छंटी सब्जियां, यहां तक कि तैयार रोटी-पराठे, दाल, मांसाहार वगैरह भी पैकेटों में उपलब्ध रहने लगे हैं। शायद ही ऐसा कोई परंपरागत भोजन है, जिसे पैकेटों में बंद करके बेचने की तरकीब न निकाल ली गई हो। बस, गरम करो या आसानी से तल-भून कर या उबाल कर तैयार कर लो! डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का कारोबार निरंतर फैल रहा है। नामी देशी-विदेशी कंपनियां सेहत और स्वाद के दावे के साथ लोगों के खानपान की आदतों को बदलने और बिक्री बढ़ाने की आक्रामक रणनीति में जुटी रहती हैं। इनके उत्पाद एफएसएसएआइ में पंजीकृत हैं। वे विज्ञापनों में फिल्म, खेल आदि क्षेत्रों की नामी-गिरामी हस्तियों के जरिए दावा करती रहती हैं कि उनके उत्पाद स्वाद से भरपूर तो हैं ही, सेहत के लिहाज से भी उत्तम गुणवत्ता वाले हैं। पर मैगी विवाद ने इन दावों पर सवालिया निशान लगा दिया है।

देर से ही सही, एफएसएसएआइ सभी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने को तत्पर हुआ है। देखना है वह इस मामले में कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता बरत पाता है। नामी कंपनियों के प्रचार और बिक्री-तंत्र को लेकर कई बार संदेह जताए गए हैं, पर उनके प्रभाव या पहुंच के कारण कभी उन पर जांच की आंच नहीं आई। इन कंपनियों की आड़ में बहुत सारे नकली उत्पाद भी बाजार में उतर आते हैं। खासकर सड़कों के किनारे या फिर छोटे-मोटे ढाबों-रेस्तरां आदि के रूप में चल रहे खानपान के कारोबार में नकली उत्पाद की खपत आसानी से और बड़ी मात्रा में हो जाती है। फिर दूरदराज के इलाकों में नामी कंपनियों के उत्पाद से मिलते-जुलते नामों वाले नकली उत्पाद की खपत कर दी जाती है।

यह सब खाद्य पदार्थों में मिलावट का ही एक रूप है। हालांकि इन पर नजर रखने के लिए हर शहर में खाद्य निरीक्षक तैनात हैं, पर वे इसे रोक नहीं पा रहे तो यह तथ्य भ्रष्टाचार और मिलीभगत की ओर ही इशारा करता है। यह भी छिपी बात नहीं है कि अक्सर गुणवत्ता-जांच के लिए चलाए गए अभियान में कुछेक उत्पादों को संदेह के दायरे में लाकर बाकी बहुत सारे उत्पादों को सुरक्षित की श्रेणी में डाल दिया जाता है। उपभोक्ताओं के पास खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने का न तो कोई आसान और प्रामाणिक साधन है और न अदालत में यह साबित कर सकने का तरीका कि कोई चीज खाने के बाद उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा। इसलिए एफएसएसएआइ की ताजा पहल ने उम्मीद जगाई है, बशर्ते यह अपनी तर्कसंगत परिणति तक पहुंचे।

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