यों तो भ्रष्टाचार को कतई सहन न करने की बात हमारी सभी सरकारें करती रहती हैं। पर इसके बरक्स सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाना दिनोंदिन और मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा करने वालों पर हमले होते हैं, कई बार उनकी जान पर भी बन आती है। करीब तीन हफ्ते पहले उत्तर प्रदेश के एक पत्रकार को जला कर मार डाला गया, इसलिए कि उसने राज्य सरकार के एक मंत्री की अवैध गतिविधियों और बलात्कार के आरोप को लेकर अपने ब्लॉग पर लिखना शुरू कर दिया था।

वहीं से चित्रकूट में एक राष्ट्रीय अखबार के पत्रकार को अगवा करने की खबर आई है। उस पत्रकार ने स्थानीय खनन माफिया के खिलाफ रिपोर्टें छापनी शुरू कर दी थीं। इसी कड़ी में मध्यप्रदेश के एक पत्रकार को जला कर मार डालने का मामला उजागर हुआ है। खबर है कि संदीप कोठारी नाम के इस पत्रकार ने अवैध खनन और चिटफंड के धंधे में लिप्त कुछ लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर कर रखा था। कुछ समय से आरोपी मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहे थे। मगर जब संदीप ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो तीन युवकों ने उन्हें अगवा कर लिया, महाराष्ट्र में नागपुर के जंगलों में ले गए और जला कर मार डाला। मध्यप्रदेश पुलिस ने तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और पूछताछ में उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है।

ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। मगर कुछ दिनों के शोर-शराबे के बाद सब कुछ पहले की तरह चलता रहता है। जमीन कब्जे से लेकर अवैध खनन तक, तरह-तरह के माफिया और ताकतवर होते जाते हैं। कई जगह उन्हें स्थानीय राजनीतिकों का संरक्षण हासिल होता है। प्रशासन के भ्रष्ट तत्त्वों से भी वे सांठगांठ बना लेते हैं। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक आदि में ऐसे कई लोगों को ट्रकों के नीचे दबा कर मार डालने की घटनाएं हो चुकी हैं, जो खनन माफिया का विरोध कर रहे थे। मध्यप्रदेश में संदीप कोठारी की हत्या भी ऐसे आपराधिक तत्त्वों के बढ़े हुए हौसले का नतीजा है। संदीप के साथ माफिया का टकराव छिपा नहीं था। उन्होंने माफिया के खिलाफ मुकदमे दायर किए तो दूसरी तरफ से उन पर कुछ झूठे मुकदमे थोप दिए गए। प्रशासन इससे नावाकिफ नहीं रहा होगा। सवाल है कि प्रशासन ने गैरकानूनी काम करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाना जरूरी क्यों नहीं समझा।

अवैध खनन की शिकायत पर प्रशासन को खुद सक्रिय होना चाहिए। इस पर किसी को अदालत जाने की जरूरत पड़े, यह तथ्य यही बताता है कि गैर-कानूनी कामों की सूचना पाकर भी प्रशासनतंत्र मूकदर्शक बना रहता है। जो काम प्रशासन को करना चाहिए था, वह संदीप कर रहे थे, फिर भी उन्हें सुरक्षा देने की कोई जरूरत क्यों नहीं समझी गई। पूरे देश में खनन माफिया का आतंक बढ़ता जा रहा है। इसकी सबसे ज्यादा कीमत कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार और आरटीआइ कार्यकर्ता चुका रहे हैं। उनमें से कइयों के शहीद होने के बाद भी हमारी सरकारों की नींद नहीं टूट रही है। उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार को जला कर मारने की घटना हुई तो भाजपा के शोरगुल से लग रहा था कि वह काफी विचलित है। पर मध्यप्रदेश में वैसी ही घटना सामने आने पर वह चुप क्यों है!

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