पिछले कुछ सालों के दौरान गिर अभयारण्य में एशियाई या बब्बर शेरों की मौत की घटनाओं के चलते इस दुर्लभ प्रजाति के अस्तित्व को लेकर सवाल उठने लगे थे। एक आंकड़े के मुताबिक बीते पांच साल में गिर अभयारण्य के इलाके में दो सौ साठ शेरों की जान चली गई। वन अधिकारियों का कहना था कि इनमें से बीस फीसद से अधिक शेरों की मौत आकस्मिक वजहों से हुई। बब्बर शेरों की पहले से ही कम तादाद और रह-रह कर इनकी मौत की खबरों को लेकर स्वाभाविक ही चिंता जताई जा रही थी। लेकिन रविवार को गुजरात के वन विभाग के अधिकारियों ने शेरों की गिनती के बाद जो नया आंकड़ा जारी किया, वह एक अच्छी खबर है।

आमतौर पर हर पांच साल पर होने वाली गिनती में शेरों की तादाद में ग्यारह से तेरह फीसद तक की ही बढ़ोतरी होती थी। लेकिन ताजा आंकड़े के मुताबिक पिछले पांच साल में शेरों की तादाद में सत्ताईस फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अब गिर के जंगल में बब्बर शेरों की संख्या बढ़ कर पांच सौ तेईस हो गई है। जाहिर है, इस शानदार सफलता के पीछे वन विभाग और शेरों के संरक्षण से जुड़े तमाम लोगों की कोशिशें हैं। न सिर्फ पशुओं के निर्बाध विचरण और इंसानी बस्तियों के बीच कई वजहों से अक्सर खड़े होने वाले विवादों पर नियंत्रण किया गया, बल्कि शेरों के प्रवास क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ, पानी की बेहतर व्यवस्था की गई। गुजरात के चौदह सौ वर्ग किलोमीटर के गिर अभयारण में पाए जाने वाले शेर अब इक्कीस हजार वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में फैल गए हैं।

दरअसल, अभयारण्यों की सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद दुर्लभ श्रेणी में गिने जाने वाले वन्यजीवों का वजूद अगर खतरे में पड़ता गया है तो इसके पीछे मुख्य वजह उनके अंगों की तस्करी के लिए गैरकानूनी रूप से होता रहा उनका शिकार है। 1880 तक उत्तर भारत के जंगलों में बब्बर शेर काफी संख्या में पाए जाते थे। लेकिन ब्रिटिश राज के दौरान और उसके पहले भी शिकार की प्रवृत्ति और जंगल-कटाई के फलस्वरूप ये कुछ खास इलाकों में सिमटते गए और इनकी संख्या भी घटती गई। बीसवीं सदी की शुरुआत में तो शिकार और सूखे के चलते इन शेरों की आबादी सिर्फ एक दर्जन के आसपास सिमट कर रह गई थी। जूनागढ़ के नवाब महाबत खांजी ने शेरों के शिकार पर पाबंदी लगा दी, तब जाकर स्थिति में थोड़ा सुधार होना शुरू हुआ। चार दशक पहले एशियाई शेरों की संख्या महज एक सौ अस्सी थी, जो 2010 में चार सौ ग्यारह तक पहुंच सकी।

इस बार पांच साल के दौरान अपेक्षया तेज गति से इनकी आबादी में वृद्धि हुई। यह भी गौरतलब है कि अफ्रीका के अलावा बब्बर शेर सिर्फ गुजरात में पाए जाते हैं। लेकिन पिछले सौ सालों के दौरान अफ्रीका में तेजी से इनकी संख्या घटती गई है। एक समय अफ्रीका में दो लाख से ज्यादा शेर थे। लेकिन यह संख्या घटते हुए आज महज तीस हजार रह गई है। इस लिहाज से देखें तो भारत में शेरों के संरक्षण के मामले में ताजा उपलब्धि का श्रेय निश्चित रूप से वन अधिकारियों, कर्मचारियों, सामुदायिक भागीदारी और वैज्ञानिक सोच के मुताबिक इस मसले पर काम करने वाले तमाम लोगों को दिया जाना चाहिए। लेकिन यह भी ध्यान रहे कि जिन कोशिशों से यह कामयाबी हासिल की गई है, उन्हें बनाए रखा जाए।

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta