आइपीएल के पूर्व प्रमुख ललित मोदी को ब्रिटिश यात्रा दस्तावेज दिलाने में सहायता करके विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने एक तीखे विवाद को न्योता दे दिया है। ब्रिटिश मीडिया में हुए खुलासे के मुताबिक सुषमा स्वराज ने ललित मोदी को पुर्तगाल जाने की इजाजत दिलाने के लिए ब्रिटेन के भारतीय मूल के लेबर सांसद कीथ वॉज और भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त जेम्स बीवन से सिफारिश की थी। फिर, वॉज ने अपने देश के वीजा एवं आव्रजन महानिदेशक से इसी के अनुरूप आग्रह किया और चौबीस घंटों के भीतर ललित मोदी को पुर्तगाल जाने के लिए आवश्यक दस्तावेज मिल गए। इस खुलासे पर सियासी तूफान उठने की वजह साफ है। ललित मोदी आइपीएल घोटाले के आरोपी हैं। उनके खिलाफ काले धन को सफेद करने और फेमा यानी विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के उल्लंघन सहित वित्तीय अनियमितता के कई मामले चल रहे हैं। 2010 से ललित मोदी ब्रिटेन में रह रहे हैं। जबकि आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय को उनकी तलाश है। निदेशालय ने उनके विरुद्ध लुकआउट नोटिस जारी कर रखा है।

मामले के तूल पकड़ने के बाद सुषमा स्वराज ने एक के बाद एक कई ट्वीट करके सफाई पेश की कि ललित मोदी को मानवीय आधार पर मदद की गई; अपनी कैंसर-पीड़ित पत्नी के ऑपरेशन के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने की खातिर मोदी को पुर्तगाल के संबंधित अस्पताल में हाजिर होना था। इस सफाई को भाजपा के तमाम नेता और सरकार के दूसरे मंत्री भी बचाव के तर्क के रूप में दोहरा रहे हैं। यह आरोप भी लगा है कि सुषमा स्वराज ने ब्रिटिश कानून के स्नातक पाठ्यक्रम में अपने भतीजे के दाखिले के लिए वॉज की मदद ली थी। जबकि स्वराज का कहना है कि यह दाखिला उनके मंत्री बनने के पहले ही हो गया था। लेकिन क्या ललित मोदी को यात्रा दस्तावेज मुहैया कराने की सिफारिश को ‘मानवीय मदद’ करार देकर वे सारे सवालों से पल्ला झाड़ सकती हैं?

यह दरियादिली ऐसे आरोपी पर क्यों, जो कार्रवाई से बचने के लिए देश से बाहर भाग गया और जांच में सहयोग नहीं कर रहा है? यूपीए सरकार ने 2013 में ब्रिटेन को पत्र लिख कर कहा था कि अगर ललित मोदी को कोई रियायत दी गई तो दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ सकता है। क्या भाजपा के सत्ता में आने पर सरकार का यह रुख बदल गया? अगर सरकार का रख बदल गया था, तो ब्रिटिश सांसद और ब्रिटिश उच्चायुक्त से सिफारिश करने के बजाय भारतीय विदेश मंत्रालय ने सीधे ब्रिटेन सरकार से बात क्यों नहीं की? क्या आइपीएल घोटाले के दागी को दिलाई गई कथित मानवीय मदद के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को पता था?

आखिर क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और संघ सुषमा स्वराज के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं? क्या ललित मोदी की सहायता करने में दिलचस्पी का दायरा बड़ा था, और सुषमा स्वराज को इसमें माध्यम बनाया गया? क्या ऐसे ही अन्य आरोपियों की भी मानवीय मदद की जाएगी? अगर सरकार की निगाह में यह कदम उचित था, तो इसे गुपचुप तरीके से क्यों उठाया गया? अगर ब्रिटिश मीडिया में खुलासा न हुआ होता, तो क्या पता यह मामला अब भी ढंका रहता! सिफारिश को कार्यान्वित कराने वाले कीथ वॉज तब ब्रिटेन के हाउस आॅफ कॉमन्स की प्रवर समिति के मुखिया थे और उनका काम अपने देश के आव्रजन विभाग पर नजर रखना था। इसलिए इस मामले में उनके व्यवहार पर ब्रिटेन में तीखे सवाल उठे हैं और कंजरवेटिव पार्टी के कई सांसदों ने इसे हितों के टकराव का मसला करार दिया है। अगर कल ब्रिटेन कीथ वॉज और अपने आव्रजन विभाग को कठघरे में खड़ा करेगा, तो भारत सरकार की स्थिति और विचित्र हो जाएगी।

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