आतंकवाद ने एक बार फिर दुनिया को दहला दिया है। बुधवार को इस्तांबुल के अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड््डे पर हुए आतंकी हमले ने इकतालीस लोगों की जान ले ली। करीब ढाई सौ लोग घायल हैं। खबरों के मुताबिक यह फिदायीन हमला था। तीन हमलावर टैक्सी से आए और मुसाफिरों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की, तो हमलावरों ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया। इस्तांबुल इससे पहले भी कई बार आतंकी हमलों का शिकार हो चुका है, जिनमें कुर्दिश अलगाववादियों द्वारा किए गए हमले भी शामिल हैं।

इसलिए तुर्की के सुरक्षा निजाम के लिए फौरन यह समझ पाना मुश्किल था कि हमले के पीछे किसका हाथ होगा। पर वहां के प्रधानमंत्री ने आइएस का हाथ होने का अंदेशा जताया है। आइएस यों तो अपने ढाए कहर का श्रेय लेने में देर नहीं करता, पर तुर्की के मामले में वह हिचकता रहा है। फिर भी, उसका हाथ होने के अनुमान के पीछे कई कारण हैं। कुर्दिश अलगाववादी आमतौर पर तुर्की पुलिस को निशाना बनाते रहे हैं। हमलावरों ने जिस तरह सीधे मुसाफिरों को निशाना बनाया, वह आइएस के तौर-तरीके से ही मेल खाता है। आतंकी हमले के लिए इस्तांबुल को चुनने के पीछे क्या वजह हो सकती है?

एक तो यह कि मुसलिम बहुल तुर्की अपनी आधुनिक, प्रगतिशील और यूरोप-प्रभावित जीवन शैली के कारण कट््टरपंथियों की आंख में चुभता रहा है। तुर्की को वे ‘गैर-इस्लामी’ मानते होंगे। इसके अलावा, तुर्की पश्चिम देशों तथा नाटो के करीब भी है। फिर, इस्तांबुल का अतातुर्क हवाई अड््डा ऐसी जगह है जहां हमला बोल कर सुर्खियां भी बटोरी जा सकती हैं और तुर्की ही नहीं, बाकी दुनिया को भी आतंकित किया जा सकता है।

यह तुर्की का सबसे बड़ा और यूरोप का तीसरा सबसे व्यस्त हवाई अड््डा है। इस हवाई अड््डे की वेबसाइट के मुताबिक पिछले साल चार करोड़ दस लाख मुसाफिर यहां से गुजरे। यह भी गौरतलब है कि इस्तांबुल में यह हमला ऐसे वक्त हुआ जब रमजान का महीना चल रहा है जो मुसलिम समुदाय के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। लेकिन हमलावरों और उनके आकाओं ने रमजान का भी खयाल नहीं किया। पिछले दिनों अफगानिस्तान में तालिबान ने एक बार फिर कहर बरपाया। वह भी रमजान के महीने में हुआ। दरअसल, तालिबान तथा आइएस जैसे संगठन इस्लाम को सिर्फ अपनी गिरोहबंदी के लिए इस्तेमाल करते हैं, इस्लाम के उसूलों और मुसलिम समुदाय की मजहबी आस्थाओं से उनका कोई मेल नहीं है।

सच तो यह है कि उनकी करतूतों ने सारी दुनिया में मुसलमानों को मुसीबत में ही डाला है। पर सवाल है कि हर अंतरराष्ट्रीय मंच से दोहराए जाते संकल्पों और तमाम सुरक्षा तैयारियों तथा रणनीतियों के बावजूद आतंकवाद फिर-फिर सिर क्यों उठा लेता है? पेरिस में हुए आतंकी हमले ने सारी दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। तब लग रहा था कि जलवायु संकट पर होने वाला वैश्विक सम्मेलन कहीं खटाई में न पड़ जाए। तब आइएस से निपटने के ढेर सारे मंसूबे बांधे गए। मगर पेरिस हमले के बाद भी आइएस ने कई बड़े हमलों को अंजाम दिया है। उसे नेस्तनाबूद करना विश्व शांति की एक बड़ी चुनौती है।