तेज रफ्तार गाड़ियों और भारी वाहनों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सड़कें बनाने पर जोर है। इसके लिए निजी कंपनियों को ठेके दिए जाने लगे हैं, जो लंबे समय तक टोल टैक्स वसूल कर अपनी लागत की भरपाई करती और कमाती हैं। पिछले कुछ सालों के अनुभवों से यह जाहिर हो चुका है कि कंपनियों का जोर सड़कों के रखरखाव पर कम, टोल टैक्स वसूलने पर अधिक रहता है। इसलिए वे जब-तब टोल की दरें बढ़ाती रहती हैं। इसकी प्रतिक्रिया में कई इलाकों में टोल बूथों को समाप्त करने की मांग को लेकर आंदोलन हो चुके हैं। ऐसे ही आंदोलन के चलते अदालत के हस्तक्षेप पर दिल्ली से गुड़गांव को जोड़ने वाली सड़क से टोल बूथ हटाना पड़ा।
अब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जब सड़कों की हालत ठीक नहीं, तो लोग किस बात के लिए टोल टैक्स दें! मामला छत्तीसगढ़ के रायपुर-दुर्ग राजमार्ग पर टोल बूथ का है, जहां करीब छब्बीस किलोमीटर लंबी सड़क क्षतिग्रस्त है। बावजूद इसके, टोल वसूलने वाली कंपनी ने वहां टोल टैक्स में चालीस फीसद बढ़ोतरी का फैसला किया था। टोल टैक्स को लेकर लोगों में इसलिए भी नाराजगी रहती है कि कंपनियां हर साल इसमें बढ़ोतरी कर देती हैं, पर इसका आधार क्या होता है, यह नहीं बताया जाता। कई टोल बूथों पर अतार्किक रूप से पैसे वसूले जाते हैं। हालत यह है कि अगर कोई अपने वाहन से एक शहर से दूसरे शहर तक जाए तो उसे जितना पैसा टोल टैक्स के रूप में अदा करना पड़ता है, उससे काफी कम किराया चुका कर वह सार्वजनिक परिवहन से पहुंच सकता है।
कई टोल बूथों के आंकड़ों से जाहिर है कि संबंधित कंपनियां अपनी लागत से काफी अधिक पैसा टोल वसूल कर कमा चुकी हैं। गुड़गांव वाले टोल बूथ के मामले में भी ऐसा ही था। फिर, टोल बूथों पर वाहनों की लंबी कतारों के चलते नाहक वक्त जाया होता है। इसके अलावा, कहीं भी किसी राजमार्ग पर कोई कंपनी सड़क सुरक्षा संबंधी उपायों पर ध्यान नहीं देती। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात का भी संज्ञान लिया है कि ट्रकों में निर्धारित सीमा से अधिक माल ढुलाई होने की वजह से सड़कों में टूट-फूट होती है, पर टोल वसूलने वाली कंपनियां उन पर काबू पाने का कोई जतन नहीं करतीं। यों यह जिम्मेदारी यातायात पुलिस की है, पर नियम-कायदों की अनदेखी का उसका रवैया छिपा नहीं है।
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश उचित है कि टोल बूथों पर ट्रकों के बोझ पर नजर रखने की व्यवस्था हो। ट्रकों को अनुशासित न बनाए जा सकने का नतीजा न केवल सड़कों की दुर्दशा, बल्कि सड़क हादसों में बढ़ोतरी भी है। सरकारों पर शुरू से आरोप लगते रहे हैं कि वे अपने करीबी लोगों की कंपनियों को सड़कों के निर्माण और टोल वसूलने के ठेके देती हैं, इसलिए असुविधाओं को नजरअंदाज करती रहती हैं। सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्देश के मद्देनजर सरकारों को सड़कों की दुर्दशा, सड़क सुरक्षा और टोल आदि से जुड़े सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
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