लगातार हो रहे आंदोलन और दबाव के बीच चार दिन बीत जाने के बाद भी कर्नाटक के आइएएस अधिकारी डीके रवि की मौत की गुत्थी सुलझाने को लेकर न राज्य सरकार गंभीर दिखाई दे रही है न केंद्र सरकार। बीते सोमवार को रवि अपने घर में मृत पाए गए थे। अभी पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ था कि राज्य के मुख्यमंत्री और पुलिस आयुक्त ने टीवी चैनलों पर दिए साक्षात्कार में घोषणा कर दी कि रवि ने खुदकुशी की है। इस पर लोगों में स्वाभाविक ही रोष है। राज्य सरकार और पुलिस को पोस्टमार्टम-रिपोर्ट का इंतजार करने का भी सब्र क्यों नहीं हुआ।

विभिन्न राजनीतिक दल, नागरिक संगठन और प्रशासनिक अधिकारियों के संगठन मांग कर रहे हैं कि मामले की सीबीआइ जांच होनी चाहिए। मगर राज्य सरकार इसे बार-बार खुदकुशी बता रही है। रवि के परिजनों के अलावा और भी बहुत-से लोगों ने सरकार के इस बयान की सच्चाई पर शक जताया है। उन्हें आशंका है कि रवि की मौत के पीछे राज्य के खनन माफिया का हाथ हो सकता है। रवि जब पिछले साल कोलार जिले में आयुक्त थे तो रेत खनन माफिया पर उन्होंने काफी हद तक लगाम लगा दी थी। उसके बाद उनका तबादला वाणिज्यिक कर विभाग में कर दिया गया। इसके विरोध में स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रवि अपने काम को लेकर कितने लोकप्रिय हो चुके थे। लिहाजा, उनकी मौत को लेकर लोगों में उपजे रोष को समझा जा सकता है।

खनन माफिया के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने या फिर भ्रष्टाचार के दूसरे मामलों में सख्त रवैया रखने वाले अधिकारियों की हत्या या फिर उन्हें सरकारी स्तर पर दंडित करने के अनेक उदाहरण हैं। सत्येंद्र दुबे, षडमुगम मंजुनाथ, दुर्गाशक्ति नागपाल जैसे अधिकारियों के नाम इस क्रम में सहज ही उभर आते हैं। कर्नाटक में खनन माफिया किस कदर अपने पैर पसार चुका है, यह किसी से छिपा नहीं है। बीएस येदियुरप्पा की सरकार के समय राजनीति, प्रशासन और माफिया का गठजोड़ जितना ताकतवर हो चुका था उसकी दूसरी मिसाल शायद ही मिले। वहां कांग्रेस की सरकार आने के बाद भी स्थिति में कोई गुणात्मक फर्क नहीं आया है। ऐसे में जब मुख्यमंत्री ने तत्काल आगे बढ़ कर रवि की मौत को खुदकुशी करार दे दिया तो यह संदेह गहराता गया कि कहीं यह किसी साजिश पर परदा डालने की कोशिश तो नहीं है। राज्य सरकार और पुलिस की दलील है कि रवि ने मौत से पहले एक महिला अधिकारी को लगातार फोन किए थे और वही इसकी वजह हो सकती है। लेकिन यह जांच का एक पहलू हो सकता है, अभी इसे अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जा सकता। हकीकत का पता निष्पक्ष जांच से ही चल सकता है।

कर्नाटक सरकार अपनी तरफ से इस पर कोई फैसला कैसे दे सकती है! राज्य के बहुत सारे प्रशासनिक अधिकारी आॅनलाइन हस्ताक्षर करके प्रधानमंत्री से अपील कर चुके हैं कि इस मामले की सीबीआइ जांच कराई जाए। स्थानीय लोग सड़कों पर उतर चुके हैं। फिर भी इस मामले में राज्य सरकार की जिद और केंद्र सरकार की चुप्पी बनी हुई है, तो इसे जिम्मेदारी भरा रुख नहीं कहा जा सकता। जिस तरह मुख्यमंत्री और पुलिस आयुक्त ने शव-परीक्षा से पहले ही बयान दे डाला उससे चिकित्सीय रिपोर्ट के प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई। ऐसे में सीबीआइ जांच और भी जरूरी हो जाती है।

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