उत्तर प्रदेश में पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली की एक अदालत ने उन्नाव की बलात्कार पीड़िता के पिता की हत्या का दोषी ठहराते हुए दस साल कैद की सजा सुना दी। लेकिन मामले में फैसले के अंजाम तक पहुंचने के दौरान जिस तरह के उतार-चढ़ाव आए, वे अपने आप में यह बताने के लिए काफी हैं कि भारतीय राजनीति में किस तरह पद और कद का दुरुपयोग किया जाता रहा है! जहां तक ताजा फैसले का सवाल है, बीती चार मार्च को अदालत ने कहा था कि आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर पीड़िता के पिता की हत्या का दोषी है, हालांकि उसका हत्या का इरादा नहीं था। लेकिन सच यह है कि अदालत में साबित हुआ कि पीड़िता के पिता को मारते हुए अधिकतम बर्बरता की गई थी और इसी वजह से उनकी मौत हुई। इसलिए अदालत ने सेंगर को गैर-इरादतन हत्या का दोषी करार दिया। इस मामले में कुलदीप सिंह सेंगर के साथ अन्य छह लोगों को भी हत्या का दोषी करार दिया गया और सबको दस-दस साल की सजा सुनाई गई। सेंगर और उसके भाई पर दस-दस लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया।
इस मामले का एक अहम पहलू यह है कि दोषियों में दो उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारी भी शामिल हैं। यानी जिनकी ड्यूटी थी कि अगर पीड़िता के पिता को बर्बरतापूर्वक मारा जा रहा था तो वे उसे बचाते, हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करते, लेकिन इसके बजाय वे तीन घंटे तक बेरहमी से पिटाई के दौरान वहां या तो मूकदर्शक रहे या फिर उसमें शामिल रहे। इसलिए सीबीआइ की ओर से अगर दोनों पुलिस अफसरों को अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करने के लिए ज्यादा उत्तरदायी ठहराने की बात कही गई, तो यह उचित ही है। यों भी पुलिस अधिकारी लोक सेवक हैं। इस नाते उनका कर्तव्य कानून और व्यवस्था को बनाए रखना है। लेकिन अगर वे किसी आपराधिक घटना के दौरान मूकदर्शक रहते हैं या फिर उसमें शामिल रहते हैं तो उन्हें ज्यादा जिम्मेदार माना जाना चाहिए। इसलिए अदालत ने सही ही बाकी दोषियों की तरह दोनों पुलिस अफसरों को भी सख्त सजा सुनाई। यों कुलदीप सिंह सेंगर ने खुद को बचाने के लिए अधिकतम उपायों का सहारा लिया, लेकिन उसके राजनीतिक रसूख और प्रभाव के बीच चुनौतीपूर्ण माहौल में सीबीआइ ने आरोपियों की दोषसिद्धि के लिए पूरी मेहनत की।
गौरतलब है कि उन्नाव में नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में पहले ही कुलदीप सिंह सेंगर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी है। इस समूचे मामले पर नजर डालने पर साफ लगता है कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से ताकतवर और प्रभावशाली कोई व्यक्ति किस तरह अपनी मनमानी कर सकता है और अपने पद-कद का इस्तेमाल करते हुए कानून के कठघरे में खड़ा होने से खुद को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक बचाए रख सकता है। मामला सामने के आने के बाद से ही पीड़ित लड़की और उसके पूरे परिवार का मुंह बंद कराने के लिए जिस तरह की प्रताड़ना का सहारा लिया गया, उस कार को भयानक टक्कर मारी गई, जिसमें पीड़िता सवार थी, वह इस बात का उदाहरण है कि जमीनी स्तर पर कोई दबंग कैसा बर्ताव करता है और कानूनी कार्रवाई से बचा भी रह जाता है। लेकिन दूसरी ओर यह साबित हुआ कि अगर कानून पर अमल करने वाली एजेंसियां और न्यायिक संस्थाएं अपनी जिम्मेदारी को पूरी शिद्दत से समझें और कोई समझौता नहीं करें तो दोषियों को सजा तक पहुंचा पाना भी संभव है, चाहे उसका रसूख कैसा भी क्यों न हो। वहीं इंसाफ पाने के लिए पीड़ित लड़की का जीवट और हौसला भी सम्मान के काबिल है।