संसद में हंगामा रुकने का नाम नहीं ले रहा। पिछले हफ्ते लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सर्वदलीय बैठक बुला कर सभी पार्टियों से अपील की थी कि वे सदन का कामकाज सुचारु रूप से चलने दें। इस पर कुछ दलों ने विश्वास दिलाया था कि वे सभापति के आसन के पास पहुंच कर नारे नहीं लगाएंगे, तख्तियां और काली पट्टियां नहीं लहराएंगे। पर तब भी कांग्रेस का रुख सहयोग का नहीं था। सोमवार को सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो कांग्रेस के नेता फिर सभापति के आसन के पास पहुंच कर नारेबाजी करने लगे। इस पर कांग्रेस के पच्चीस सदस्यों को पांच दिन के लिए सदन से निलंबित कर दिया गया।

हंगामे के चलते सदन में कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं हो पा रहा। कुछ जरूरी विधेयकों पर चर्चा लगातार टल रही है। ऐसे में विपक्ष से सहयोग की अपेक्षा स्वाभाविक है। आखिर संसद चर्चा का मंच है, सरकार के खिलाफ नारेबाजी का नहीं।

पर इस मामले में सरकार से भी लोकतांत्रिक रवैए की अपेक्षा की जाती है। आखिर संसद में कामकाज का माहौल बेहतर बनाने की जिम्मेदारी उसी की है। जब से मानसून सत्र शुरू हुआ है, विपक्ष सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग पर अड़ा हुआ है।

सरकार ने इसे शांत करने का व्यावहारिक रास्ता निकालने के बजाय उल्टा कांग्रेस और यूपीए सरकार की खामियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। वह शुरू से ही विपक्ष को छकाने की मंशा से रणनीति बनाती रही है। यही वजह है कि एक तरफ सरकार ने गतिरोध दूर करने के मकसद से सर्वदलीय बैठक बुलाई तो दूसरी तरफ उसके नेताओं ने चुनौती देने वाले अंदाज में कहा कि कांग्रेस एक ऐसे मैदान में कूद पड़ी है, जहां से उसके निकलने का कोई रास्ता नहीं है। जब सरकार खुद संसद को अखाड़ा समझ कर विपक्ष से निपटने की कोशिश करेगी, तो तनाव कम होने की सूरत भला कैसे बनेगी!

सरकार लगातार पेशकश कर रही है कि विपक्ष अपने मुद्दों पर सदन में बातचीत करे, पर विपक्ष का तर्क है कि ललित मोदी को मदद पहुंचाने और व्यापमं जैसे मसलों को बातचीत के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता। ये आपराधिक प्रकृति के मामले हैं और इन पर कानूनी प्रक्रिया के तहत कदम उठाए जाने चाहिए। मगर सरकार यूपीए के समय भ्रष्टाचार के मामलों में संबंधित मंत्रियों और नेताओं के इस्तीफे की बात भुला चुकी है। वह अपने किसी भी मंत्री या नेता का इस्तीफा नहीं चाहती।

पिछले सत्र में भी जब भूमि अधिग्रहण और धर्मांतरण के मुद्दे पर विपक्ष ने प्रधानमंत्री से राज्यसभा में आकर सफाई देने की मांग की तो सरकार इसी तरह अड़ी रही। प्रधानमंत्री वहां अंतत: नहीं गए। इस सत्र में भी सरकार संसद में गतिरोध का ठीकरा विपक्ष के मत्थे फोड़ कर निश्चिंत हो जाना चाहती है। इस तरह गतिरोध से आखिर सरकार का कामकाज बाधित हो रहा है, उसे लचीला रुख अपनाते हुए व्यावहारिक रास्ता अपनाने से गुरेज क्यों होना चाहिए!

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