भारत पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता की पहल एक बार फिर तनातनी की भेंट चढ़ गई। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक आखिरकार पाकिस्तान ने यह कह कर रद्द कर दी कि वह भारत की शर्तों पर बातचीत नहीं करेगा। वार्ता से एक दिन पहले भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संवाददाताओं से कहा कि अगर पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को तूल देगा तो राष्ट्रीय सलाहकारों के बीच बातचीत संभव नहीं होगी। इसी को आधार बना कर पाकिस्तान ने बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। यों इस बातचीत से किसी समस्या के समाधान की उम्मीद नहीं थी, पर इसके जरिए दोनों देशों के बीच लंबे समय से रुके शांति प्रयासों को आगे बढ़ाने का सिलसिला बनता। रूस के उफा में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच सहमति बनी थी कि वे आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत का सिलसिला शुरू करेंगे।

उस क्रम में यह पहली बैठक होनी थी। हालांकि उफा सम्मेलन के तुरंत बाद जिस तरह पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने कहा कि भारत जब तक कश्मीर मसले को हल करने की दिशा में संजीदगी नहीं दिखाता, तब तक दूसरे किसी भी मुद्दे पर बातचीत मुमकिन नहीं है, उसी से जाहिर हो गया था कि पाकिस्तान का रुख क्या रहने वाला है। भारत का तर्क है कि जब तक दहशतगर्दी और सरहद पर गोलीबारी नहीं रुकती, तब तक दूसरे मसलों को सुलझाने की सूरत नहीं बनेगी। इसके उलट पाकिस्तान की दलील है कि कश्मीर मसला सुलझते ही अपने आप दोनों देशों के बीच मुकम्मल अमन का माहौल बनेगा।

दहशतगर्दी को लेकर पाकिस्तान शुरू से आंखें चुराने की कोशिश करता रहा है। अब तक भारत की तरफ से आतंकवादी घटनाओं से जुड़े जितने भी दस्तावेज सौंपे गए, वह उन्हें बेबुनियाद बताता रहा है। सीमा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन का दोष भी वह भारत के मत्थे मढ़ता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भले वह जाहिर करने की कोशिश करता है कि आतंकवाद पर नकेल कसने को लेकर वह गंभीर है, पर फौज, खुफिया एजंसी और अपने अंदरूनी राजनीतिक दबावों के चलते इस मसले पर भारत के साथ बातचीत करना उसके लिए कभी आसान नहीं रहा। इसलिए बैठक से पहले सरताज अजीज ने दिल्ली में हुर्रियत नेताओं से बातचीत का कार्यक्रम बनाया।

शुरू से कश्मीर मसले को तूल देते रहे। बैठक आतंकवाद रोकने को लेकर बातचीत के लिए तय थी, पर उसका रुख मोड़ कर कश्मीर समस्या की तरफ कर दिया। ऐसे में आतंकवाद रोकने के मसले पर दिल्ली में उनसे सहज बातचीत की उम्मीद कम थी। पर सवाल यह भी है कि खुद भारत इस बैठक को लेकर कितना गंभीर था। पाकिस्तान ने इस बातचीत के पहले जो भी अड़ंगे लगाए, वे नए नहीं थे। इसमें भारत की तरफ से अधिक उदारता की अपेक्षा थी कि वह पाकिस्तान की बात सुने और शांतिपूर्वक अपने मुद्दे उसके सामने रखे। इस तरह फिर दोनों देशों के विदेश सचिवों, विदेश मंत्रियों, प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत का सिलसिला बनता। अब वह संभावना लंबे समय के लिए खत्म हो गई है।

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