मार्च 1993 में एक के बाद एक हुए तेरह विस्फोटों के मुख्य षड्यंत्रकारी दाऊद इब्राहिम के ठिकाने को लेकर केंद्र सरकार के परस्पर विरोधी बयानों के चलते उसकी कार्यशैली पर गंभीर सवालिया निशान लगे हैं। सोमवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा कि दाऊद के पाकिस्तान में होने की विश्वसनीय सूचना है और सरकार उसे भारत वापस लाकर रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान पर उसकी अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं को पूरा करने, दाऊद इब्राहिम और अन्य आतंकवादियों का पता लगाने और उन्हें भारत को सौंपने के लिए सरकार हर स्तर पर दबाव बनाए हुए है।
राजनाथ सिंह ने जो कहा उसमें कोई नई बात नहीं है, यह भारत सरकार का स्थायी रुख रहा है। इसे दोहराने की जरूरत इसलिए पड़ी कि उन्हीं के मंत्रालय के राज्यमंत्री हरिभाई पारथी भाई चौधरी ने पिछले दिनों इससे अलग बयान दिया था, जिसे लेकर सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। चौधरी ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि दाऊद के पते-ठिकाने के बारे में कुछ पता नहीं है, जैसे ही पता चलेगा उसके प्रत्यर्पण के लिए सरकार पहल करेगी।
मजे की बात है कि उसी दिन दूसरे गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए इससे उलट बात कही थी; उन्होंने कहा था कि दाऊद पाकिस्तान में ही है। एक ही दिन दो गृह राज्यमंत्रियों के परस्पर विरोधी बयानों के चलते सरकार की किरकिरी होना स्वाभाविक था। इस तरह सरकार को घेरने का अच्छा मौका विपक्ष को मिल गया। राजनाथ सिंह का बयान उसी फजीहत से उबरने की कोशिश है। लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि पारथी भाई चौधरी ने किस आधार पर दाऊद के ठिकाने के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की थी।
कोई मंत्री जब संसद में किसी सवाल का जवाब देता है तो अपने मंत्रालय से उपलब्ध कराए गए तथ्यों के आधार पर ही। मंत्रालय से उन्हें दाऊद के बारे में अनिश्चितता जताने वाले तथ्य कैसे मिले, जबकि भारत सरकार दाऊद के पाकिस्तान में होने का दावा करती आई है। इस आशय के दस्तावेज भी उसने प्रत्यर्पण की मांग करते हुए समय-समय पर पाकिस्तान को सौंपे हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत यह मामला उठाता रहा है, यह जताने के लिए कि आतंकवाद के भगोड़े अपराधियों को पाकिस्तान संरक्षण देता है। मुंबई में 1993 में हुए सिलसिलेवार धमाकों के चलते करीब ढाई सौ लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग जख्मी हुए थे। तब से भारत को दाऊद की बेसब्री से तलाश रही है। जब भी उसने पाकिस्तान को भगोड़े वांछित अपराधियों की सूची सौंपी उसमें दाऊद का नाम काफी ऊपर रहा है।
इंटरपोल की तरफ से दाऊद के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी हुआ तो इसमें भारत की कोशिशों की अहम भूमिका थी। लेकिन अपनी ही सरकार के एक मंत्री के बयान ने भारत के रुख पर एकबारगी पलीता लगा दिया। यह पाकिस्तान को कहने का मौका देना था कि भारत जब चाहे उस पर अनर्गल आरोप मढ़ देता है। राजनाथ सिंह का बयान सामने आते ही पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कहा कि दाऊद उनके देश में नहीं है।
यों अल कायदा सरगना उसामा बिन लादेन के बारे में भी पाकिस्तान यही कहता था कि वह उसके यहां छिपा हुआ नहीं है। लेकिन हकीकत दुनिया के सामने आ गई। इसलिए दाऊद की बाबत भी सच्चाई पाकिस्तान के दावे से अलग हो सकती है। लेकिन अपने ही गृह मंत्रालय के अलग-अलग बयान ने पाकिस्तान की जवाबदेही कमजोर करने की गुंजाइश पैदा कर दी। राजनाथ सिंह का लोकसभा में दिया गया बयान भूल सुधार तो है, पर क्या वह सरकार की विश्वसनीयता को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कर पाएगा?
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