आंध्र प्रदेश के चित्तूर में सेषचलम पहाड़ियों पर मुठभेड़ में बीस तथाकथित चंदन तस्करों के मारे जाने को लेकर विवाद पैदा हो गया है। तमिलनाडु सरकार का तर्क है कि मारे गए लोगों में ज्यादातर श्रमिक थे। आंध्र प्रदेश पुलिस का कहना है कि उसने करीब सौ लकड़हारों को लाल चंदन की लकड़ियां काटते देखा तो उन्हें समर्पण करने को कहा, मगर उन्होंने पुलिस दल पर पत्थरों, कुल्हाड़ियों आदि से हमला कर दिया। इस पर पुलिस ने बचाव में गोलीबारी की। तमिलनाडु के राजनीतिक दल इस घटना को अविवेकपूर्ण कार्रवाई बता रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आंध्र प्रदेश सरकार को उस घटना की शीघ्र जांच करा कर रिपोर्ट देने को कहा है।
आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के करीब बाईस लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र में लाल चंदन उगता है। इस चंदन की कीमत भारतीय बाजार में पच्चीस से चालीस लाख रुपए प्रति टन और दूसरे देशों में करोड़ों तक होती है। इसलिए इस चंदन पर तस्करों की नजर बनी रहती है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद तस्करों पर नकेल कसना मुश्किल बना हुआ है। इस तरह लाल चंदन की प्रजाति पर ही खतरा मंडराने लगा है। करीब अठारह साल पहले अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण संघ ने चिंता जताई थी कि अगर इसी तरह लाल चंदन की अवैध कटाई चलती रही तो जल्दी ही इसकी प्रजाति विलुप्त हो जाएगी। आंध्र प्रदेश की सत्ता संभालने के साथ ही मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने चंदन तस्करों पर नकेल कसने का संकल्प लिया था। करीब दो साल पहले विशेष कार्यबल गठित किया गया, जिसके तहत सेषचलम के जंगलों में चौरासी चौकियां बनाई गर्इं, तैंतीस विशेष कार्रवाई दल और ग्यारह सचल दस्ते गठित किए गए। इसी अभियान के तहत वहां बीस लोग मारे गए।
आंध्र प्रदेश पुलिस का तर्क है कि तस्करों पर गोली चलाने का आदेश उसने पहले ही सरकार से ले लिया था। पर इससे वह अपनी जवाबदेही से मुक्त नहीं हो जाती। जिन लोगों पर उसने गोलियां दागीं, वे हथियारबंद नहीं थे, जिनसे उन्हें जान को खतरा हो सकता था। ऐसे मामलों में जब भीड़ हमला करती हो, पुलिस को अपने बचाव में कमर से नीचे के हिस्से में गोली चलाने का नियम है, मगर आंध्र प्रदेश पुलिस ने ऐसा करना जरूरी नहीं समझा। स्वाभाविक ही सवाल उठ रहे हैं कि उसने तस्करों को गिरफ्तार करने के बजाय जान से मार देना क्यों जरूरी समझा। इन तमाम पहलुओं के मद्देनजर अगर विरोध के स्वर उठ रहे हैं तो आंध्र प्रदेश सरकार को इस मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए, ताकि सही तथ्य सामने आएं और तमिलनाडु के लोगों का असंतोष दूर हो सके। दूसरे, चंदन की तस्करी को रोकना किस हद तक चुनौती बन चुका है, इससे तमिलनाडु सरकार भी अनजान नहीं है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन तक पहुंचने में पुलिस को करीब बीस साल लग गए थे। फिर यह कारोबार बड़े पैमाने पर और संगठित तरीके से किया जाता है।
आशंका जताई जाती रही है कि इसमें कुछ अंतरराष्ट्रीय गिरोह और स्थानीय प्रशासन के लोग भी शामिल हो सकते हैं। इसलिए तस्करी की पूरी शृंखला की पहचान और उसे तोड़ने के प्रयास केवल आंध्र प्रदेश नहीं, तमिलनाडु और दूसरे सीमावर्ती राज्यों की सरकारों की तरफ से भी किए जाने की जरूरत है। लिहाजा मामले को राजनीतिक रंग देने के बजाय सही तरीके से सुलझाने की जरूरत है। असल समस्या वन संपदा और वन्य जीवों की सुरक्षा की है, उसके लिए पुलिस और विशेष कार्यबल के काम करने का तरीका क्या हो, इस पर साझा विचार-विमर्श होना चाहिए।
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