गुरदासपुर के दीनानगर में सोमवार को तड़के हुए आतंकवादी हमले के कारण फिर से यह सवाल उठा है कि आंतरिक सुरक्षा के मामले में हमारी तैयारियां कितनी चाक-चौबंद हैं। इस हमले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी समेत पांच लोगों की जान चली गई। फौजी वर्दी पहने हमलावरों ने एक बस, एक स्वास्थ्य केंद्र और एक पुलिस थाने पर हमला बोला। सेना के जवानों ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाला और हमलावरों को ढेर कर दिया, वरना इस हमले का कहर और भी भयावह हो सकता था।
हालांकि किसी आतंकवादी संगठन ने फिलहाल इसकी जिम्मेवारी नहीं ली है, मगर साफ है कि यह आतंकी हमला था और इसे पूरी तैयारी से अंजाम दिया गया। शक की सूई लश्कर-ए-तैयबा की ओर गई है। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने आइएसआइ पर अंगुली उठाई है। सवाल यह है कि साजिश की भनक सुरक्षा से जुड़ी खुफिया एजेंसियों को क्यों नहीं मिल पाई। दीनानगर पाकिस्तान से लगी सीमा के नजदीक है। इसलिए उधर से घुसपैठ और आतंकवादी खतरे पर नजर रखने की जरूरत यहां दूसरे इलाकों से कहीं ज्यादा है। सीमा पर तैनात बीएसएफ के जवानों से कहां चूक हुई?
यह सही है कि पंजाब में पिछले बीस साल में दहशतगर्दी की इतनी बड़ी घटना नहीं हुई थी। लेकिन जो हुआ, क्या दूर-दूर तक उसका कोई अंदेशा नहीं था? जब भी गणतंत्र दिवस या स्वाधीनता दिवस आसन्न रहता है, आतंकवादी हमले की आशंका अधिक रहती है। उसके मद््देनजर निगरानी और चौकसी भी बढ़ा दी जाती है। खुफिया एजेंसियों का दावा है कि उन्होंने आगाह किया था कि लश्कर-ए-तैयबा के कुछ आतंकवादी पाकिस्तान रेंजर्स और आइएसआइ की मदद से घुसपैठ की ताक में हैं और वे पंद्रह अगस्त या उससे पहले कोई बड़ी वारदात कर सकते हैं। यह चेतावनी क्यों अनसुनी रह गई?
गुरदासपुर की इस घटना ने पंद्रह अगस्त के समारोहों के मद्देनजर सुरक्षा संबंधी चिंता काफी बढ़ा दी है। दिल्ली समेत अनेक राज्यों में फौरन एलर्ट जारी कर दिए गए। दूसरी तरफ राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई। कहीं-कहीं विरोध-प्रदर्शन भी हुए। केंद्र में भाजपा की सरकार है तो पंजाब की सरकार में वह अकाली दल के साथ साझीदार है। इसलिए कांग्रेस गुरदासपुर की घटना को लेकर भाजपा पर निशाना साधने का मौका भला क्यों छोड़ती! पर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी जवाबदेही की गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है, यह कहते हुए कि सीमापार से होने वाली घुसपैठ रोकने का काम केंद्र का है।
इस सबसे खिन्न केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने अपील की है कि राजनीतिक दल संयम बरतें और आतंकवाद के खिलाफ एक स्वर में बोलें। लेकिन वे ऐसी नसीहत दे रहे हैं जिसका पालन खुद भाजपा ने कभी नहीं किया। विपक्ष में रहते हुए भाजपा हर आतंकवादी घटना को सरकार की घोर नाकामी साबित करने में जुट जाती थी। पर वैसा ही दूसरी पार्टियां कर रही हैं, तो यह उसे बहुत नागवार गुजर रहा है! बहरहाल, रूस में नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की मुलाकात से उपजी संभावनाओं की चमक पहले ही काफी फीकी पड़ चुकी है। इस आतंकवादी हमले के चलते दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होने की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। आतंकवाद से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। पर पाकिस्तान से बातचीत के द्वार बंद करने की मांग नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे आतंकवादी गुटों का ही हौसला बढ़ेगा।
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