यह कश्मीर में पर्यटन में तेजी का मौसम है। लेकिन रोजगार के अवसर बढ़ने के इन्हीं दिनों में घाटी में हालात एक बार फिर असामान्य हो गए हैं। राज्य सरकार ने एक रैली में पाकिस्तान का झंडा फहराने और पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए जाने के बाद हुर्रियत के एक गुट के नेता अहमद शाह गिलानी और चरमपंथी अलगाववादी मसर्रत आलम को गिरफ्तार कर लिया। संकेत हैं कि उन्हें गिरफ्तार करने से राज्य सरकार झिझक रही थी, पर केंद्र के दबाव में उसे ऐसा करना पड़ा। स्वाभाविक ही भाजपा इसका श्रेय लेना चाहेगी। लेकिन वह जिस साझा सरकार में शामिल है उसके मुख्यमंत्री ने शपथ लेते ही राज्य में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो जाने के लिए अलगाववादियों, यहां तक कि आतंकवादियों और पाकिस्तान का भी शुक्रिया अदा किया था।
इसके चंद रोज बाद पीडीपी के कुछ नेताओं ने अफजल गुरु की फांसी को गलत करार देते हुए उसके अवशेष उसके परिवार वालों को सौंपने की मांग की। इस सब पर हंगामा चल ही रहा था कि मसर्रत को रिहा कर दिया गया। तब भाजपा और पीडीपी के नेता अलग-अलग राग अलाप रहे थे। पीडीपी जहां मसर्रत की रिहाई को न्यायिक कार्यवाही की परिणति बता रही थी, वहीं विपक्ष के निशाने पर आई भाजपा को विरोध जताने के लिए मजबूर होना पड़ा। पार्टी के और नेताओं के अलावा प्रधानमंत्री ने भी मसर्रत की रिहाई की निंदा की और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को राज्य सरकार को नोटिस भेजने की जरूरत महसूस हुई थी।
इस बार फिलहाल पीडीपी और भाजपा आमने-सामने नहीं हैं। भाजपा को चुनावी कामयाबी जम्मू में मिली है और पीडीपी को घाटी में। ऐसे में पीडीपी सारे फैसले भाजपा की मर्जी से नहीं कर सकती। गिलानी और मसर्रत को नजरबंद करने के विरोध में तो तुरंत प्रदर्शन हुए ही, शनिवार को गिलानी के आह्वान पर घाटी में बंद रहा। घाटी में हुई इस प्रतिक्रिया से पीडीपी की परेशानी बढ़ सकती है। पर इसे गिलानी के असर का पैमाना मानना भूल होगी। लोगों की नाराजगी की ज्यादा बड़ी वजह त्राल की घटना है। पिछले हफ्ते के शुरू में त्राल में एक सैन्य कार्रवाई के दौरान दो युवकों की मौत हो गई। सेना का कहना है कि दोनों आतंकवादी थे। जबकि स्थानीय लोगों का आरोप है कि दोनों युवक फर्जी मुठभेड़ में मारे गए। इस घटना के विरोध में रैली करने से पहले गिलानी और मसर्रत को गिरफ्तार कर लिया गया। पर मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले हुर्रियत के दूसरे धड़े ने विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया। त्राल के वाकये के विरोध में हुए प्रदर्शनों पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई में एक व्यक्ति की जान चली गई और तीन लोग जख्मी हो गए। पीडीपी के लोग भी त्राल के मामले में मुखर हो जाएं, तो हैरत की बात नहीं होगी।
दरअसल, सख्ती के साथ संयम भी जरूरी है, वरना हुर्रियत को पैर पसारने का मौका मिलेगा। पाकिस्तान का झंडा फहराने और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। लेकिन मानवाधिकार हनन के आरोपों की जांच होनी चाहिए। घाटी में लोगों की जायज शिकायतों के प्रति संवेदनशीलता दिखा कर ही अलगाववादियों को अलग-थलग किया जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि पीडीपी और भाजपा की साझा सरकार इस तकाजे को लेकर संजीदा नहीं दिखती, दोनों की दिलचस्पी अपने-अपने सियासी खेल में अधिक है। यों गठबंधन के लिए बातचीत कई दौर में चली थी और हर नुक्ते पर तफसील से चर्चा हुई थी, फिर गठबंधन का एजेंडा भी घोषित किया गया। मगर कई अहम मसलों को अस्पष्ट रहने दिया गया और उन पर चुप्पी साध ली गई। लिहाजा, दोनों के विरोधाभास फिर से कभी भी उभर सकते हैं।
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