बिजली की कमी के मंजर रोजाना दिखते हैं। जबकि देश में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की प्रचुर उपलब्धता है। छिटपुट कोशिशों को छोड़ दें तो इनके व्यापक उपयोग की कोई ठोस पहलकदमी नहीं दिखती। इस लिहाज से रेल के डिब्बों की छतों पर सौर प्लेट लगा कर ट्रेन में बल्ब जलाने और पंखे चलाने के लिए बिजली के इंतजाम की योजना का अपना महत्त्व है।
आइआइटी चेन्नई में तैयार सौर प्लेटों के जरिए इस योजना को अंजाम देने का जिम्मा फिलहाल राजस्थान के जोधपुर के वर्कशॉप को दिया गया है। वहां यह योजना डीएमयू ट्रेनों पर प्रयोग के स्तर पर शुरू होगी। कामयाबी मिलने पर इसे एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेनों में भी लागू किया जाएगा। एक आकलन के मुताबिक बीस बोगियों वाली ट्रेन में बिजली और पंखे चलाने के लिए साल भर में तकरीबन नब्बे हजार लीटर डीजल खर्च होता है। देश भर में जितनी रेलगाड़ियां दिन में खासी धूप वाले इलाकों में दौड़ती रहती हैं, उसमें अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि अगर यह योजना ठीक से क्रियान्वित की जाए तो ट्रेन के डिब्बों में सिर्फ रोशनी और पंखे के लिए डीजल के मद में खर्च होने वाली कितनी राशि बचाई जा सकती है।
सही है कि ऊर्जा के गैरपरंपरागत स्रोतों की विपुल उपलब्धता के बावजूद इनकी अनदेखी होती रही है। लेकिन पिछले कुछ सालों में इनके महत्त्व को दर्ज किया गया है और इस दिशा में पहल भी हो रही है। करीब डेढ़ साल पहले सरकार संचालित भेल यानी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड के तहत जयपुर के पास तेईस हजार एकड़ के दायरे में चार हजार मेगावाट की क्षमता वाला सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की एक वृहद परियोजना तैयार की गई थी। इसके अलावा, इसी साल के शुरू में हरियाणा सरकार ने समूचे राज्य में पांच सौ वर्ग गज या इससे ज्यादा के भूखंड पर बने निजी बंगलों, रिहाइशी सोसाइटियों, व्यावसायिक परिसरों से लेकर दफ्तर, स्कूल, अस्पताल आदि सभी इमारतों के लिए यह निर्देश जारी किया था कि वे सितंबर तक अपनी छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगवा लें।
दरअसल, अक्षय ऊर्जा के जितने संसाधन देश में मौजूद हैं, संभावनाओं के मुकाबले उनका बहुत ही थोड़ा हिस्सा इस्तेमाल हो पाया है। लगभग ढाई साल पहले ऊर्जा से संबंधित संसदीय समिति ने लोकसभा में पेश अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में अक्षय ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं और इससे एक लाख उनासी हजार मेगावाट तक बिजली पैदा की जा सकती है। सौर और पवन ऊर्जा बिजली की कमी दूर करने में बहुत सहायक साबित हो सकती है। और भी खास बात यह है कि यह पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल और नवीकरणीय है। इसमें विस्थापन की समस्या भी नहीं आती।
मकानों की छतों से लेकर बंजर पड़ी खाली जगहों तक, अनेक स्तरों पर सौर ऊर्जा के साधन बिठाए जा सकते हैं। विद्युत उत्पादन के अन्य तरीके प्राकृतिक संसाधनों का काफी क्षय करते हैं और उनसे काफी प्रदूषण भी होता है। एटमी बिजली के बारे में दावा किया जाता है कि वह प्रदूषण-रहित है, मगर परमाणु कचरे का खतरनाक असर सदियों बाद भी बना रहता है। सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने का खर्च कई बार लोगों को हतोत्साहित करता है। लेकिन सौर ऊर्जा तकनीक में निरंतर हो रही प्रगति ने इसकी लागत घटने की उम्मीद जगाई है।
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