भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में सरहदी इलाकों की पेचीदा स्थिति एक खास उलझन रही है। भारत ने इसे सुलझाने का रास्ता साफ कर दिया है। बांग्लादेश के साथ कुछ बस्तियों और भूक्षेत्रों की अदला-बदली के समझौते पर संसद ने आम राय से मुहर लगा दी है। लिहाजा, प्रधानमंत्री के ढाका दौरे से दोनों मुल्कों को एक नई मजबूती मिलने की उम्मीद दिख रही है। खबर है कि प्रधानमंत्री के इस दौरे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उनके साथ होंगी। यह बांग्लादेश से बढ़ती नजदीकी का एक और सकारात्मक संकेत है। गौरतलब है कि सितंबर 2011 में यूपीए सरकार के समय ही भू-सीमा समझौते पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर होने थे। तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ढाका जाने का प्रस्ताव ममता बनर्जी ने ठुकरा दिया था। यही नहीं, उनके एतराज के कारण न केवल भू-सीमा समझौते का प्रस्ताव अधर में लटक गया बल्कि तीस्ता जल बंटवारे के विवाद को सुलझाने की पहल भी अधर में रह गई थी। भाजपा भी तब सीमा समझौते के खिलाफ थी, और उसकी असम इकाई तो इसे असम के हितों की कुरबानी करार देते हुए विरोध में सड़कों पर उतर आई थी।
यह दिलचस्प है कि यूपीए सरकार के समय जो पार्टियां इस समझौते पर एतराज कर रही थीं, अब वही इसके क्रियान्वयन का नेतृत्व कर रही हैं! भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के रुख में आया बदलाव स्वागत-योग्य है। पर बांग्लादेश के साथ लगती सीमा वाले अन्य राज्यों यानी असम, त्रिपुरा और मेघालय के मुख्यमंत्रियों की भी सराहना की जानी चाहिए जिन्होंने समझौते को खुशी-खुशी स्वीकार किया। इस मसले पर विपक्ष का सहयोग हासिल करने में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने अहम भूमिका निभाई। भू-सीमा समझौते के लिए बांग्लादेश शुरू से ख्वाहिशमंद रहा है। इस मामले में दोनों पक्षों के बीच रजामंदी मई 1974 में ही हो गई थी। लेकिन इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर्रहमान के बीच बनी सहमति को आखिरी बाधा पार करने में इकतालीस साल लग गए। बहरहाल, भू-सीमा समझौते की संभावना ने प्रधानमंत्री के ढाका दौरे की सफलता की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है।
तीस्ता का भी विवाद सुलझ ही जाएगा, फिलहाल इस बारे में दावे से नहीं कहा जा सकता। हां, इसकी गुंजाइश जरूर दिख रही है। यूपीए सरकार के समय तीस्ता समझौता भी होते-होते रह गया था, क्योंकि तब ममता बनर्जी ने इसे बंगाल के लिए नुकसानदेह बताया था। उनकी आपत्तियों का खयाल रखते हुए तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कदम पीछे खींच लिए थे। लेकिन फरवरी में अपनी ढाका यात्रा के दौरान ममता बनर्जी का रुख बदला हुआ था, बांग्लादेश के नेताओं के साथ बातचीत में उन्होंने भू-सीमा समझौते के अलावा तीस्ता के मसले पर भी राजी होने के संकेत दिए थे। मोदी के साथ उनकी संभावित यात्रा से जल विवाद अंतिम रूप से सुलझने या कम से कम इसमें निर्णायक प्रगति होने की आशा की जा सकती है।
तीस्ता का उद्गम पूर्वी हिमालय में है और वहां से निकल कर यह सिक्किम और बंगाल से बहते हुए बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र में मिलती है। इसलिए इस मामले में उचित ही सिक्किम सरकार की भी राय ली जा रही है। ममता बनर्जी की दिलचस्पी इस बात में भी रही है कि कोलकाता और अगरतला के बीच वाया ढाका बस सेवा शुरू हो। इसमें कोई अड़चन नहीं है। अगर बांग्लादेश को सीमा समझौते और जल विवाद सुलझने की मुराद पूरी होती दिखेगी, तो न केवल कोलकाता और अगरतला के बीच बस सेवा, बल्कि संपर्क और आवाजाही के और भी रास्ते खुलेंगे। आगे चल कर दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से व्यापार और आवाजाही बढ़ाने में भी बांग्लादेश मददगार साबित हो सकता है। पर इसी के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने के बारे में भी सोचा जाना चाहिए।
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