सारदा घोटाले के आरोपी पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को गिरफ्तारी से बचाने के आरोप में गृह सचिव को हटा कर नरेंद्र मोदी सरकार ने जताने की कोशिश की है कि दागदार लोगों के प्रति कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। गृह सचिव अनिल गोस्वामी ने खुद गृहमंत्री से स्वीकार किया कि उन्होंने मतंग सिंह की गिरफ्तारी टालने को लेकर सीबीआइ अधिकारियों से फोन पर बात की थी। इस पर गृहमंत्री ने प्रधानमंत्री कार्यालय से सलाह ली और वहां से गोस्वामी को हटाने का संकेत मिला। अनिल गोस्वामी का कार्यकाल आगामी जून तक था। गृहमंत्री चाहते तो उनका तबादला भी कर सकते थे, मगर उन्हें इस्तीफा देने को कहा गया। इससे पहले डीआरडीओ के चेयरमैन और विदेश सचिव को भी तत्काल प्रभाव से पद छोड़ने को कहा गया था। हालांकि उन दोनों मामलों में गृह सचिव को हटाए जाने जैसा कोई कारण स्पष्ट नहीं था। इतने बड़े अधिकारियों को हटाने के मामले में सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह उनकी गरिमा का खयाल रखे। मगर अनिल गोस्वामी से इस्तीफा लेकर मोदी सरकार ने शायद यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह गलत लोगों को किसी भी प्रकार की रियायत देने को तैयार नहीं है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने से पहले ही घोषणा कर दी थी कि उनकी सरकार में दागदार लोगों के लिए कोई जगह नहीं होगी। इसलिए उन्होंने मंत्रियों और अधिकारियों का चुनाव काफी संभल कर किया था। मगर हकीकत यह है कि जैसा सख्त रवैया सचिव स्तर के अधिकारियों और संस्थाओं के अध्यक्षों आदि के मामले में दिखाया जा रहा है, मंत्रियों, सांसदों, पार्टी कार्यकर्ताओं के मामले में नहीं नजर आ रहा। अगर सरकार अनियमितताओं के मामले में बिल्कुल बर्दाश्त न किए जाने का रुख अपनाए हुए है तो सरकार में शामिल दूसरे लोगों के प्रति भी उससे यही अपेक्षा की जाती है।
छिपी बात नहीं है कि नरेंद्र मोदी सरकार में कई लोग ऐसे हैं, जिन पर संगीन आरोप हैं। केंद्रीय मंत्री निहालचंद मेघवाल पर एक महिला के बलात्कार और भयादोहन का आरोप है। अदालत के नोटिस की वे लंबे समय से अनदेखी करते आ रहे हैं। मगर मोदी सरकार ने उन्हें बख्श रखा है। डीआरडीओ के चेयरमैन और विदेश सचिव पर ऐसा कोई आरोप नहीं था, फिर भी उन्हें हटाने में देर नहीं लगाई गई। हैरानी की बात है कि मेघवाल को अभी तक मंत्री बनाए रखा गया है। इसी तरह कई मंत्री और सांसद सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाले बयान दे चुके हैं। निरंजन ज्योति, योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज के बयानों को लेकर संसद में लंबा गतिरोध रहा, मगर उनके खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। पूरे देश में धर्मांतरण और घर वापसी जैसे कार्यक्रमों में न सिर्फ भाजपा और संघ परिवार के कार्यकर्ता हिस्सा ले रहे हैं, उसके सांसद भी सक्रिय हैं। इसे लेकर अब तक सरकार को किरकिरी झेलनी पड़ रही है। इन लोगों के खिलाफ कोई कड़ा कदम उठाया जाना क्यों जरूरी नहीं समझा गया। संवैधानिक मूल्यों को चोट पहुंचाने वालों के विरुद्ध क्या सरकार का कोई दायित्व नहीं बनता? मंत्रालयों आदि में प्रशासनिक अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपना और उससे मुक्त करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं हो सकता कि वह उनके सम्मान का ध्यान रखे बगैर जब और जैसे चाहे हटा दे। सरकार की प्रशासनिक दृढ़ता एकपक्षीय नहीं होनी चाहिए। अगर अधिकारियों के प्रति वह सख्त रुख अपनाती है तो मंत्रियों, सांसदों आदि के मामले में भी उससे वैसे ही व्यवहार की उम्मीद की जाती है।
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