फिलहाल मणिपुर में जो हालात हैं, उसमें सुधार के लिए रास्ता भी आखिर यही था कि पहले अलग-अलग विरोधी पक्षों के बीच संवाद कायम किया जाए और कम से कम तात्कालिक तौर पर शांति को प्राथमिकता में रखा जाए। इसके बाद स्वाभाविक ही इसकी अहमियत स्थापित होगी और दीर्घकालिक या स्थायी महत्त्व का हल भी निकलेगा।
इस लिहाज से देखें तो गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री की पहल का अपना महत्त्व है। राज्य के विभिन्न हिंसाग्रस्त इलाकों का दौरा करने और राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के साथ बातचीत के बाद उन्होंने राज्य के राज्यपाल की अध्यक्षता में एक शांति समिति के गठन और हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों लिए मुआवजे के अलावा राहत और पुनर्वास पैकेज की घोषणा की।
साथ ही वहां हुई जातीय हिंसा की जांच के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश स्तर के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग का गठन भी किया जाएगा। दरअसल, राज्य में हालात जिस स्तर तक जटिल हो चुके हैं, उसमें किसी भी पक्ष की ओर से और अधिक हिंसा परिस्थितियों को ज्यादा मुश्किल बनाएगी और इसका खमियाजा सभी पक्षों को भुगतना पड़ेगा। इसलिए शांति की राह की ओर बढ़ना ही सभी पक्षों के लिए जरूरी है।
इसके अलावा, गृह मंत्री का यह बयान भी संभवत: उग्र हुए पक्षों को शांत होने और हल की ओर बढ़ने के बारे में सोचने की जगह बनाएगा कि मणिपुर उच्च न्यायालय की ओर से जल्दबाजी में लिए गए फैसले की वजह से दो गुटों के बीच हिंसा हुई; लोग अफवाहों पर ध्यान न दें और शांति बनाए रखें। हालांकि फिलहाल हिंसा में शामिल समूहों की गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत है, क्योंकि कई बार शांति की सही दिशा को हिंसा या अराजकता की कोई छोटी घटना भी भटका दे सकती है।
यों इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से संकटग्रस्त मणिपुर में स्थायी शांति के लिए संघर्षरत मैतेई और कुकी समुदायों के बीच न्यूनतम सहमति की जमीन तैयार करने के लिए त्रिआयामी दृष्टिकोण पर काम करने की खबर आ चुकी थी। जाहिर है, मणिपुर में मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जे से संबंधित जो विवाद खड़ा हुआ है, उसका हल हिंसा और अराजकता से नहीं निकल सकता। बल्कि इससे नई ऐसी परिस्थितियां पैदा होंगी, जिसमें बहुत सारे लोग कानूनी कार्रवाई की चपेट में आएंगे।
दरअसल, विवाद की शुरुआत के बाद इसके समाधान को लेकर सरकार की ओर से उदासीनता का जो रुख रहा, उसके मद्देनजर कुछ स्थानीय जनजातीय समुदायों को यह भरोसा नहीं हो पा रहा कि उनके हितों की रक्षा की जाएगी। यों वहां के पहाड़ी इलाकों से कथित बाहरी लोगों को हटाने के सवाल पर पहले ही लोगों में रोष था, लेकिन उसके बाद मैतेई समुदाय के लोगों को जनजाति का दर्जा देने के मसले पर उच्च न्यायालय के रुख के बाद शेष जनजातीय समुदायों के बीच नाराजगी काफी बढ़ गई और उससे उपजे विरोध ने हिंसा का रास्ता भी अख्तियार कर लिया। जबकि यह ऐसा सवाल है, जिस पर संबंधित हितधारक पक्षों से विचार-विमर्श और उनकी सहमति हासिल करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए था।
लेकिन वोट या समर्थन के लिए कई बार ऐसे कदम भी उठा लिए जाते हैं, जिसके असर का अंदाजा पहले नहीं होता है। विडंबना यह है कि मैतेई समुदाय के मुद्दे पर हुई हड़बड़ी के बाद मणिपुर में अब तक काफी लोगों की जान जा चुकी है। इसे केंद्रीय गृह मंत्री ने भी रेखांकित किया है। अगर यही स्थिति कायम रही तो हालात और जटिल होंगे। इसलिए जरूरत इस बात की है कि सभी पक्ष अब संवाद के जरिए एक संतुलित समाधान तक पहुंचें।