कनाडा में पढ़ाई करने गए और कुछ दिनों से निर्वासन के भय में जी रहे भारतीय मूल के छात्रों को वहां के अधिकारियों ने बड़ी राहत दी है। उनके निर्वासन पर स्थगन आदेश जारी कर दिया है। इस मामले में भारत का विदेश मंत्रालय लंबे समय से छात्रों के प्रति सहानुभूति पूर्वक व्यवहार की अपील कर रहा था।
विदेशमंत्री ने कहा है कि इसमें दोष छात्रों का नहीं, बल्कि उन एजंसियों का है, जिनकी मार्फत वे वहां पढ़ाई करने पहुंचे थे। दरअसल, मामला यों है कि कई विद्यार्थी यहां से कनाडा के संस्थानों में दाखिला कराने वाली एजंसियों की मदद से वहां पहुंचे थे। उन्होंने जिस कालेज में दाखिले का पत्र उन्हें दिया, उसी आधार पर वीजा मिल गया। मगर जब वे वहां पहुंचे, तो उन कालेजों ने कहा कि उनके यहां दाखिला पूरा हो चुका है।
ऐसे में एजंसियों ने उन्हें किसी दूसरे कालेज में दाखिला लेने को प्रेरित किया। इस तरह वहां रह कर उन्होंने पढ़ाई पूरी की और कहीं काम करने लगे। मगर गड़बड़ तब हुई जब उन्होंने वहां स्थायी निवास के लिए आवेदन किया। वहां के अधिकारियों ने देखा कि वे जिस कालेज में दाखिले के लिए आए थे, उसके बजाय दूसरे कालेज से पढ़ाई की और वहां रह कर काम करते रहे। फिर उन्होंने उन छात्रों को फर्जी तरीके से वहां रहने का दोषी करार देते हुए वापस भेजने का आदेश जारी कर दिया। ऐसे करीब सात सौ युवा हैं।
अच्छी बात है कि कनाडा के संबंधित प्राधिकार ने इस मामले को समझा और वहां फंसे युवाओं को वापस भेजने के अपने फैसले पर रोक लगा दी। यह पहली बार नहीं है, जब विदेश भेजने वाले एजंटों के फर्जीवाड़े के चलते भारतीय नागरिकों को दूसरे देशों में मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय युवाओं को ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश इसलिए आकर्षित करते हैं कि वहां जाना आसान है और कुछ पैसे लेकर एजंट लोगों को वहां आसानी से भेज भी देते हैं।
मगर कुछ दिनों बद जब उन्हें वहां स्थायी निवास की अनुमति नहीं मिलती, तो इधर-उधर भटकना और दूसरे फर्जीवाड़ों का सहारा लेना पड़ता है। खासकर पंजाब और हरियाणा के युवाओं में कनाडा और ब्रिटेन जाने की ललक कुछ अधिक देखी जाती है। इसका फायदा एजंसियां उठाती हैं और भारी-भरकम रकम लेकर उन्हें वहां भेज भी देती हैं।
कुछ साल पहले ऐसे ही फर्जीवाड़े करने वाली कुछ एजंसियों को पकड़ा गया था, जिसमें कई नामचीन लोगों के भी हाथ पाए गए। तब सरकार ने इस धंधे पर रोक लगाने का संकल्प लिया था, मगर अब तक ऐसा कुछ नहीं हो पाया है। विद्यार्थियों का विदेश में पढ़ाई के लिए आना-जाना कोई गुनाह नहीं है। मगर जब किसी वजह से कुछ युवा एजंटों के जरिए फर्जी तरीके से दूसरे देशों में पहुंचते हैं, तभी मुश्किल होती है।
चिकित्सा विज्ञान जैसे कुछ पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए तो प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं, इस तरह उनमें पंजीकृत कराने और बाहर दाखिले के लिए जाने वाले छात्रों के बारे में विदेश मंत्रालय के पास आंकड़ा रहता है। मगर जो फर्जी दस्तावेजों पर वहां जाते हैं, मुश्किलें उनके सामने ही खड़ी होती हैं। विदेशमंत्री ने कहा तो है कि कनाडा में निर्वासन का भय झेल रहे छात्रों का दोष नहीं है, मगर इसके लिए जो लोग दोषी हैं, क्या उन पर नकेल कसने की कोई तैयारी है, ताकि आगे ऐसी समस्या न पैदा हो!